हम सब गीता को श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद से जोड़कर जानते हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि गीता-ज्ञान का यह स्वरूप गणेश जी ने भी सुनाया था। इसे “गणेश गीता” कहा जाता है और इसका उल्लेख गणेश पुराण के क्रीड़ा खंड में मिलता है।
कथा कुछ यूं है—राजा वरेण्य की पत्नी रानी पुष्पिका गणपति की बड़ी भक्त थीं। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर गणेश जी पुत्र के रूप में जन्मे। लेकिन अपने विचित्र रूप को देखकर राजा-रानी घबरा गए और बालक को जंगल में छोड़ दिया। वहां महर्षि पराशर ने उनका पालन-पोषण किया। आगे चलकर जब राक्षस सिंदूरा ने त्रिलोक में आतंक मचाया, तो उसी गणेश ने देवताओं की रक्षा करते हुए उसका वध किया।
जब राजा वरेण्य को अपनी गलती का अहसास हुआ, तो उन्होंने गणेश से क्षमा मांगी और धर्म-मोक्ष का मार्ग पूछा। तब गणपति ने उन्हें जो उपदेश दिया, वही “गणेश गीता” कहलाया।
गणेश गीता की मुख्य बातें
यह ग्रंथ 11 अध्यायों और करीब 412 श्लोकों का है। इसमें योग, भक्ति, ज्ञान और मोक्ष की राह समझाई गई है।
- आत्मा की अमरता और शरीर की नश्वरता पर जोर।
- निष्काम कर्म और कर्म को ईश्वर को अर्पित करने की शिक्षा।
- भक्ति और ध्यान के जरिए अहंकार से ऊपर उठने का मार्ग।
- सत्व, रज और तम गुणों की व्याख्या और उन्हें शुद्ध करने का तरीका।
- दैवी और आसुरी स्वभाव में फर्क, और मोक्ष तक पहुंचने की साधना।
भगवद्गीता से तुलना
भगवद्गीता 18 अध्यायों और 700 श्लोकों में अर्जुन जैसे संशयग्रस्त योद्धा को मार्गदर्शन देती है। जबकि गणेश गीता 11 अध्यायों में राजा वरेण्य जैसे धर्मनिष्ठ शासक को सीधे मोक्ष-मार्ग दिखाती है। यही इसका बड़ा फर्क है।
समय और महत्व
गणेश गीता कब लिखी गई, इसका स्पष्ट प्रमाण नहीं है। लेकिन पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह संवाद द्वापर युग से भी पहले हुआ था।
गणेश चतुर्थी के मौके पर यह कथा याद दिलाती है कि गीता-ज्ञान सिर्फ युद्धभूमि तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन के हर मोड़ पर मार्गदर्शन करता है।