“GST की लूट: अस्पताल बनाम इंसानियत”

सोचिए… एक मरीज जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है।

ऑक्सीजन लगी है।

डॉक्टर दौड़ रहे हैं — “बचाओ, बचाओ!”

सीपीआर दिया जा रहा है…

वेंटिलेटर लगाया जा रहा है।

लेकिन ठीक उसी वक्त…

कुछ लोग खड़े हैं —”मरा कि नहीं?”

“बच गया? अरे हां, बच गया?”

तो अब बोलो — “12% टैक्स लाओ!

“हां… मरीज मरता है, तो भी टैक्स…

बचता है, तो भी टैक्स!

यह टैक्स लेने की जगह है क्या?

यहां डॉक्टर जान बचा रहे हैं…और वहां सरकार जान पर टैक्स लगा रही है!

सोचिए —सोना खरीदिए, तो 3% टैक्स।

हीरे पर टैक्स थोड़ा ज़्यादा…लेकिन किसी गरीब मरीज को ऑक्सीजन लगे, तो 12%!

मर रहा है आदमी, तो भी टैक्स 18% तक!

क्या ये इंसानियत है? या सिस्टम की संवेदनहीनता?