हरियाणा विधानसभा चुनाव: उम्मीदवारों की पहली लिस्ट से कांग्रेस और बीजेपी में नाराज़गी की लहर

हरियाणा विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, प्रदेश का राजनीतिक तापमान तेजी से बढ़ रहा है। हाल ही में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की, जिससे दोनों दलों के अंदर गहरा असंतोष उभरने लगा है। कई वरिष्ठ नेताओं को टिकट न मिलने के कारण विरोध की लहर पैदा हो गई है, और कुछ नेताओं ने पार्टी से बगावत करने का भी ऐलान कर दिया है।

कांग्रेस में असंतोष की शुरुआत

कांग्रेस ने अपनी पहली सूची में कुल 32 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की है, लेकिन इस सूची के जारी होने के तुरंत बाद पार्टी के अंदर असंतोष का माहौल बन गया। बहादुरगढ़ से वरिष्ठ नेता राजेश जून, जिनका नाम सूची से गायब था, ने पार्टी के खिलाफ बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। नाराज राजेश जून ने कांग्रेस नेतृत्व पर धोखा देने का आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें टिकट का वादा किया गया था, लेकिन अंतिम समय पर उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया। उन्होंने अपने समर्थकों के साथ बैठक कर स्पष्ट किया कि वह दोगुने वोटों से जीत हासिल करेंगे।

बीजेपी में भी बगावत की चिंगारी

बीजेपी ने अपनी 90 में से 67 सीटों पर उम्मीदवारों की सूची जारी की, लेकिन 24 घंटे के भीतर ही पार्टी के अंदर असंतोष की स्थिति पैदा हो गई। खासकर तीन प्रमुख नेता, जिनमें कर्ण देव कांबोज, रणजीत सिंह चौटाला, और कविता जैन शामिल हैं, ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। कर्ण देव कांबोज, जो भाजपा के ओबीसी मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष थे, ने इंद्री से टिकट न मिलने पर नाराजगी जताई और अपने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। इसी तरह रणजीत सिंह चौटाला ने भी सूची में अपना नाम न होने के बाद अपने समर्थकों के साथ बैठक की और चुनावी रणनीति पर चर्चा की।

गठबंधन की चुनौतियाँ

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) के बीच गठबंधन की बातचीत भी जारी है, लेकिन इस राजनीतिक असंतोष ने कांग्रेस के लिए चुनौती बढ़ा दी है। वहीं, बीजेपी के लिए भी बागी नेताओं की समस्या चुनौतीपूर्ण बन गई है, जो कि आगामी चुनावों में पार्टी की स्थिति को प्रभावित कर सकती है।

निष्कर्ष

हरियाणा विधानसभा चुनाव में दोनों प्रमुख पार्टियों, कांग्रेस और बीजेपी, के लिए यह समय काफी चुनौतीपूर्ण बन गया है। टिकट वितरण के बाद उठे विरोध के स्वर चुनावी समीकरणों को बदल सकते हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि ये पार्टियां किस तरह इन आंतरिक कलहों का सामना करती हैं और अपने नाराज नेताओं को कैसे संभालती हैं।

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