मुंगेर: छठ पर्व के चौथे और अंतिम दिन, जिसे ऊषा अर्घ्य कहा जाता है, हजारों श्रद्धालु भगवान सूर्य और छठी मैया को अर्घ्य देने के लिए मुंगेर के प्रसिद्ध शिवकुंड घाट पर एकत्र हुए। माना जाता है कि शिवकुंड में छठ पूजा का आयोजन पिछले हजार वर्षों से लगातार होता आ रहा है, जो इसे बिहार के सबसे पुराने और पवित्र छठ स्थलों में से एक बनाता है।
ऊषा अर्घ्य का महत्व
छठ पूजा के इस अंतिम दिन पर श्रद्धालु सूर्योदय से पहले नदी के तट पर पहुँचते हैं और उदित होते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस अवसर पर व्रती महिलाएं सूर्य देव से संतान की रक्षा और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। अर्घ्य अर्पण के बाद श्रद्धालु कच्चे दूध, जल और प्रसाद के साथ व्रत का पारण करते हैं।शिवकुंड का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्वशिवकुंड घाट न केवल एक पूजा स्थल है, बल्कि एक ऐतिहासिक धरोहर भी है। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस स्थल पर हजार वर्षों से लगातार छठ पूजा का आयोजन होता आ रहा है। यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही है और इस दिन को मनाने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं। शिवकुंड में छठ पूजा का यह आयोजन स्थानीय समाज की धार्मिक आस्था का केंद्र है और इसे बड़े ही श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।
श्रद्धालुओं की सुरक्षा और व्यवस्था का विशेष ध्यान
इस साल भी, शिवकुंड दुर्गा पूजा समिति द्वारा श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा के लिए व्यापक व्यवस्थाएं की गई हैं। घाट की सफाई, प्रकाश व्यवस्था, पेयजल की व्यवस्था और सुरक्षा बलों की तैनाती की गई है। इसके अतिरिक्त, समिति ने मेडिकल कैंप भी लगाए हैं ताकि किसी भी आपात स्थिति में त्वरित सहायता उपलब्ध हो सके। छठ पूजा के दौरान शिवकुंड में पुलिस बल की तैनाती और सीसीटीवी कैमरों के माध्यम से निगरानी व्यवस्था भी की गई है, जिससे श्रद्धालु निर्भय होकर पूजा कर सकें।
समाजिक सद्भाव और सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक
शिवकुंड में छठ पूजा का आयोजन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह सामाजिक सद्भाव और सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक भी है। यहां विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग एक साथ आकर इस पवित्र अवसर को मनाते हैं, जो एकता और सामंजस्य का अनूठा उदाहरण है।निष्कर्षहजारों वर्षों से चल रही इस परंपरा के साथ, शिवकुंड में छठ पूजा का आयोजन स्थानीय समाज की आस्था और श्रद्धा का प्रतीक बना हुआ है। शिवकुंड दुर्गा पूजा समिति द्वारा की गई व्यवस्थाओं से श्रद्धालुओं को सुगमता से पूजा करने का अवसर मिल रहा है। यह आयोजन केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक सद्भाव और एकता को प्रोत्साहित करने का प्रतीक भी है।