“ओरिएंट क्लब में ‘गुंडागर्दी लीग’ – मारपीट के बाद जागी पुलिस”

अहमदाबाद के एलिसब्रिज इलाके में ओरिएंट क्लब की “गुंडागर्दी की प्रीमियर लीग” मंगलवार देर रात खूब चली —

मैदान पर खिलाड़ी दो गुट, और दर्शक बने हमारे सजग पुलिसकर्मी, जो हमेशा की तरह “घटना के बाद” एक्शन में आए।

क्लब प्रबंधन का आरोपओरिएंट क्लब के अध्यक्ष अजीत पटेल के अनुसार, भद्रेशभाई शाह पहले क्लब के सदस्य थे, लेकिन बार-बार की आपत्तिजनक हरकतों के चलते उन्हें निलंबित कर दिया गया।

मंगलवार रात, वे अपने परिवार और कुछ “स्पेशल मेहमानों” (जिनकी पहचान अभी भी सीसीटीवी में छुपा-छुपी खेल रही है) के साथ क्लब में घुसे।पटेल का आरोप है कि समिति के एक दिव्यांग सदस्य पर बेरहमी से हमला किया गया, जिससे वे बेहोश हो गए और अस्पताल ले जाना पड़ा।

क्लब सचिव राजेंद्र त्रिवेदी को भी घसीटकर पीटा गया और सोने की चेन, घड़ी और बटुआ छीन लिया गया।पटेल का कहना है, “कोई भी क्लब ऐसे दुर्व्यवहार को बर्दाश्त नहीं कर सकता, लेकिन शायद पुलिस की बर्दाश्त की सीमा काफी लंबी है, क्योंकि वे हमेशा घटना के बाद ही सक्रिय होते हैं।”

भद्रेशभाई शाह का पलटवारवहीं, भद्रेशभाई शाह का दावा है कि जब वे अपनी पत्नी हेमाक्षीबेन (58) और बच्चों भूमिल (28) व हेताबेन (26) के साथ क्लब पहुँचे, तो दिव्यांग शाह का उनके बेटे और बेटी से विवाद हो गया।

उनका आरोप है कि दिव्यांग शाह ने उनके बेटे पर आरसीसी ब्लॉक फेंका, जिससे उसका पैर टूट गया।

इसके बाद राजेंद्र त्रिवेदी और राजू नारंग के साथी चाकू, लोहे के पाइप और लकड़ी के डंडे लेकर कूद पड़े। शाह का कहना है कि उनके बेटे को रेस्टोरेंट में घसीटकर पीटा गया और सिर पर पाइप से वार कर घायल किया गया।

शाह की शिकायत सुनकर पुलिस ने तुरंत एफआईआर दर्ज की — क्योंकि लिखना पुलिस का पसंदीदा खेल है, और मैदान पर उतरना शायद आखिरी विकल्प।

पुलिस की कार्रवाई (या कहें, पोस्ट-एक्शन रूटीन)एलिसब्रिज पुलिस ने दिव्यांग शाह, राजेंद्र त्रिवेदी और राजू नारंग के खिलाफ गुजरात पुलिस अधिनियम की धाराओं 117(2), 118, 115(2), 324, 296(बी), 351(एनएस 2), 54 और 135(1) के तहत मामला दर्ज किया है।

पुलिस का कहना है कि वे सीसीटीवी फुटेज खंगाल रहे हैं, ताकि घटना में शामिल अन्य लोगों की पहचान हो सके।व्यंग्य यह है कि सीसीटीवी फुटेज अब सबूत भी देगा और पुलिस की “तुरंत एक्शन” की परिभाषा पर भी रोशनी डालेगा —

क्योंकि जब मारपीट हो रही थी, तब पुलिस की मौजूदगी उतनी ही ग़ायब थी जितनी सड़क पर ट्रैफिक नियम।

यह मामला अब दोनों पक्षों के आरोप-प्रत्यारोप, पुलिस की “घटना के बाद की चुस्ती” और अहमदाबाद के सोशल सर्कल्स में चर्चा का सबसे ताज़ा टॉपिक बन चुका है।क्लब में घूंसे चले, बाहर शब्द, और पुलिस… बस रिपोर्ट बनाने में व्यस्त!