नई दिल्ली:- लाखों गरीब हिंदु आदिवासी बच्चों को धर्मान्तरण कराने वाली मदर टेरेसा का क्या है सच? हिन्दू संतो के मामले में अत्यंत कठोरता अपनाने वाली देश की सर्वोच्च न्यायालय मदर टेरेसा की संस्था “मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी” के विरुद्ध NCPCR (National Commission for the Protection of Child Rights) “राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग” की एक याचिका पर यह कहती है कि”हमें अपने एजेंडे में न घसीटें” आखिर क्यों न्याय के लिए देश की सर्वोच्च संस्था ईसाई मिशनरियों के विरुद्ध उचित साक्ष्य के बाबजूद करवाई से डरती है?
क्या है सेवा के नाम पर धर्मांतरण करने वाली मदर टेरेसा का सच?
गरीब बच्चों की सेवा के नाम पर मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की स्थापना करने वाली मदर टेरेसा इसके आड़ में बच्चों की खरीद-फरोख में इसके धर्मान्तरण करवाने में भी शामिल थी कुछ दावों में तो यहां तक कहा गया है कि कुछ सेंटर पर लड़कियों से देह व्यापार भी करवाए जाते थे इसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका पर दायर की गई थी।
मदर टेरेसा की संस्था में काम करने वाले डॉ अरूप चटर्जी कहते हैं कि गरीब बच्चों के सेवा के उद्देश्य मिशनरीज ऑफ चैरिटी से जुड़ने के बाद जो उसने उस संस्था की जो सच्चाई देखी उससे उनका इस संस्था के प्रति मोह भंग हो गया। अपने दो पुस्तक “the untold story और “the final verdict” के माध्यम से वे कहते हैं कि संस्था के द्वारा बच्चों की सेवा का दावा पूरी तरह से फर्जी है। जिन गरीब लोगों के इलाज के लिए अस्पताल बनाने के नाम पर मदर टेरेसा देश एवं विदेश से धन लेती थी उनके लिए कोलकाता में एक भी अस्पताल नही बनाया। वे ये भी बताते हैं की वहां लाए जाने वाले बच्चों के माता पिता से पहले ही हस्ताक्षर ले लिए जाते थे की अब उन बच्चों पर उनके माता पिता का कोई अधिकार नहीं होगा, कई दफा बच्चों एवं गरीब हिंदु आदिवासियों पर दवाइयों के परीक्षण की भी बात सामने आई। कहा जाता है कि इन परीक्षणों से गुजरने वाले लोग असहनीय पीड़ा से गुजरते थे लेकिन संस्था उन्हें उनके हाल पर छोड़ देती थी। कई बार इन लोगों को मिशनरी यूरोप भी भेजती थी जिसके बाद उनका आज तक कोई पता नहीं चला है।
चमत्कार का दावा भी पूरी तरह फर्जी सिद्ध
उनका कहना है कि जिन दो चमत्कार के आधार पर वेटिकन ने मदर टेरेसा को संत घोषित किया वे दावे भी फर्जी सिद्ध हो चुके हैं। पश्चिम बंगाल की जिस महिला ने यह दावा किया था कि उनके गले में पड़े लॉकेट में पड़े मदर टेरेसा की तस्वीर देखने के बाद उनका ट्यूमर ठीक हो गया था उनके ईलाज करने वाले डॉ कहते हैं कि महिला दावे के बाद भी असहनीय पीड़ा से गुजर रही थी और उसके ईलाज के लिए उनके पास कई दफा वो आ चुकी थी।
डॉ. अरूप चटर्जी कहते हैं की रोज हजारों बच्चों को खाना खिलाने के नाम पर फंड लेनी वाली मदर टेरेसा के कोलकाता सेंटर पर मात्र 300 लोगों को खाना बनता था, और वे भी उन लोगों को खिलाया जाता था जोकि ईसाई बनना स्वीकार करते थे। कई दफा मामूली दवाई से ठीक हो सकने वाली रोगी को भी धर्मान्तरण न करने पर बिना दबा के मरने के लिए छोड़ दिया जाता था।
देश तोड़ने के षडयंत्र में शामिल “भारत रत्न “
टेरेसा एक मात्र भारत रत्न हैं जिसने भारत को तोड़ने का षडयंत्र भी रचा था। वे चाहती थी कि पूर्वोत्तर को भारत से अलग कर एक अलग ईसाई देश बनाया जाए। जिसके लिए पूरे पूर्वोत्तर भारत में चर्च की स्थापना किया गया, इसका असर इस बात से लगाया जा सकता है कि पूर्वोत्तर में कई राज्य ईसाई बाहुल्य हैं और वहां अलगाववाद चरम पर है इसका प्रभाव आज पूर्वोत्तर में अलगाववाद एवं मणिपुर हिंसा के रूप में सामने आ रही है। भारत विरोध में षडयंत्र रचने वाले पाचात्य संस्था के साथ गहरे संबंध इस बात को सिद्ध करती है की इनका गरीबों के ईलाज के नाम पर लिया जाने वाला फंड सिर्फ और सिर्फ सिर्फ धर्मान्तरण और देश विरोधी गतिविधियों में ही उपयोग किया गया।
मदर टेरेसा को ड्रग तस्कर, और तानाशाहों से भी खूब फंड मिला करते थे।
वर्ष 2017 में यह समाचार आया था कि वेटिकन के कोष में पड़े धन में से अगर मदर टेरेसा का हिस्सा निकाल लिया जाए तो वेटिकन का कोष खली हो जाएंगे। “