आज राष्ट्र ‘लोकमाता’ देवी अहिल्याबाई होल्कर की पुण्यतिथि पर कोटिशः नमन कर रहा है। सनातन चेतना की शाश्वत प्रतीक और नारी शक्ति की प्रतिमूर्ति अहिल्याबाई होल्कर ने अपने अद्वितीय नेतृत्व, न्यायप्रियता और जनकल्याणकारी दृष्टिकोण से भारतीय इतिहास में अमिट छाप छोड़ी।
अठारहवीं शताब्दी में मालवा साम्राज्य की गद्दी संभालते हुए अहिल्याबाई ने ऐसी आदर्श शासन व्यवस्था स्थापित की, जो धर्म, संस्कृति और समाज—तीनों के लिए समान रूप से हितकारी थी। उनके शासनकाल में प्रजा को सुरक्षा और समृद्धि मिली, साथ ही सांस्कृतिक पुनर्जागरण को भी नया आयाम प्राप्त हुआ।
सांस्कृतिक पुनरुत्थान में योगदान
अहिल्याबाई ने वाराणसी, उज्जैन, हरिद्वार, द्वारका, सोमनाथ सहित देशभर में मंदिरों का जीर्णोद्धार और तीर्थस्थलों का विकास कराया। गंगा घाटों से लेकर चार धाम तक, उनके द्वारा कराए गए निर्माण आज भी दूरदर्शिता और आस्था के प्रतीक हैं।
आदर्श शासन की नींव
उनका प्रशासन न्यायसंगत, पारदर्शी और जन-केंद्रित था। गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता, अपराध पर कठोर नियंत्रण, और व्यापार को बढ़ावा देने वाली नीतियों ने मालवा को स्थिरता और समृद्धि के मार्ग पर अग्रसर किया।
विरासत और प्रेरणा
‘लोकमाता’ का जीवन इस बात का सजीव प्रमाण है कि सशक्त नेतृत्व केवल पुरुषों तक सीमित नहीं है। उनका आदर्श आज ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ के निर्माण की प्रेरणा बन रहा है।
पूरे देश में आज विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों द्वारा उनके जीवन और कार्यों को स्मरण करते हुए कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। अहिल्याबाई की यह विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए सदैव प्रेरणास्रोत बनी रहेगी।