“मोदी काल में ‘कर्ज मुक्त भारत’ नहीं, ‘कर्जयुक्त नागरिक’ बने”

अच्छे दिन नहीं, अब “कर्ज दिवस” मनाइए! — मोदी युग की नई सौगात

देश के आम आदमी की जेब में अब उम्मीद नहीं, उधारी बची है। कभी ‘अच्छे दिन’ के पोस्टर लगे थे, अब ‘ईएमआई भरने की आखिरी तारीख़’ याद दिलाने वाले नोटिफिकेशन मोबाइल में चिपक गए हैं। कांग्रेस ने इस मुद्दे को उठाते हुए सीधे-सीधे कह दिया है — “मोदी राज में अच्छे दिन नहीं, कर्ज वाले दिन आ गए हैं!”पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने एक रिपोर्ट के हवाले से मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों पर तंज कसते हुए कहा कि देश की जनता अब ‘सेविंग्स अकाउंट’ खोलती है, लेकिन उसमें जमा करने की बजाय निकालने की प्लानिंग करती है। आमदनी घट रही है, महंगाई बढ़ रही है और बैंक लोन अब लाइफस्टाइल का हिस्सा बन चुका है — जैसे सुबह की चाय के साथ क्रेडिट कार्ड बिल का स्वाद।

रमेश का कहना है, “लोगों की जेब में अब आश्वासन के सिक्के हैं और उम्मीद पर भी जीएसटी लग चुका है। बचत खत्म हो रही है और पेट पालने के लिए लोग अब बैंक की लाइन में नहीं, लोन की लाइन में खड़े हैं।”

सरकारी चमकदार रिपोर्ट्स के उलट, ज़मीनी हकीकत कुछ यूं है कि आम आदमी के घर का बजट अब एक्सेल शीट से ज़्यादा अस्पताल की पर्ची जैसा लग रहा है — हर महीने नया झटका, नई कटौती, और अंत में ‘बैलेंस कम’ का संदेश।

विकास” की कहानी ऐसी हो चली है कि अब लोग GDP नहीं, अपनी EMI की ग्रोथ ट्रैक करते हैं।

कुल मिलाकर, सच्चाई यही है कि ‘अच्छे दिन’ फिलहाल बैंक की ब्याज दरों में लुकाछुपी खेल रहे हैं और आम जनता ‘नो कॉस्ट EMI’ में ही खुशी खोजने पर मजबूर है।