नयी दिल्ली, 11 अक्टूबर प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी. वाई. चंद्रचूड़ और उनके भूटानी समकक्ष ल्योनपो चोग्याल दागो रिगडजिन की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में दोनों पड़ोसी देशों ने न्यायिक और कानूनी सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से चार समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए।
प्रधान न्यायाधीश सात अक्टूबर से 10 अक्टूबर तक भूटान की आधिकारिक यात्रा पर थे। इस दौरान उन्होंने भूटान के राजा, राजकुमारी सोनम देचन वांगचुक और प्रधान मंत्री दाशो शेरिंग तोबगे से भी मुलाकात की और उनके साथ दोनों देशों के बीच ‘‘मित्रता और सहयोग के अप्रतिम और विशेष संबंधों’’ सहित कई मुद्दों पर चर्चा की।
प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने नौ अक्टूबर को अपने भूटानी समकक्ष के साथ द्विपक्षीय न्यायिक सहयोग को मजबूत करने के तौर- तरीकों पर चर्चा की।
उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी एक विज्ञप्ति के मुताबिक, ‘‘भूटान के उच्चतम न्यायालय परिसर में दोनों देशों के मुख्य न्यायाधीशों की उपस्थिति में चार समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए, जिनका उद्देश्य भारत और भूटान के बीच न्यायिक और कानूनी सहयोग बढ़ाना है।’’
न्यायालय ने बताया, ‘‘इनमें न्यायिक सहयोग बढ़ाने पर दोनों देशों के शीर्ष न्यायालयों के बीच समझौता ज्ञापन पर; राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, भोपाल और भूटान राष्ट्रीय विधि संस्थान के बीच कानूनी शिक्षा और दोनों संस्थाओं के बीच क्षमता निर्माण में सहयोग पर समझौता ज्ञापन का नवीनीकरण; कानूनी शिक्षा और अनुसंधान पर नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (एनएलएसआईयू), बेंगलुरु और जेएसडब्ल्यू स्कूल ऑफ लॉ के बीच समझौता ज्ञापन का नवीनीकरण; और मध्यस्थता को मजबूत करने और बढ़ावा देने के मामले में सहयोग के लिए भारतीय मध्यस्थता परिषद और भूटान वैकल्पिक विवाद समाधान केंद्र के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर शामिल हैं।’’
प्रधान न्यायाधीश ने आठ अक्टूबर को जिग्मे सिंग्ये वांगचुक (जेएसडब्ल्यू) स्कूल ऑफ लॉ के तीसरे दीक्षांत समारोह में हिस्सा लिया और कार्यक्रम को संबोधित किया।
विज्ञप्ति के मुताबिक, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ दार्शनिक अंदाज में कहा कि उन्होंने अपने देश की सेवा ‘‘अत्यंत समर्पण’’ के साथ की है, जबकि उन्हें इस बात का ‘‘डर और चिंता’’ रहती है कि इतिहास उनके कार्यकाल का कैसे मूल्यांकन करेगा।
उन्होंने यह भी कहा कि यह गलत धारणा है कि भारत और भूटान के समुदायों के पारंपरिक मूल्य आधुनिक लोकतांत्रिक विचारों, जैसे स्वतंत्रता, समानता और असहमति के विपरीत हैं।
प्रधान न्यायाधीश ने नौ अक्टूबर को ‘‘न्यायिक जवाबदेही और सार्वजनिक विश्वास को बढ़ाना: पारदर्शिता और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना’’ विषय पर आयोजित एक संगोष्ठी को संबोधित किया।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि न्यायाधीशों से अपेक्षा की जाती है कि वे संवैधानिक और कानूनी प्रश्नों पर निर्णय करते समय लोकप्रिय नैतिकता से ‘‘अप्रभावित’’ होकर कार्य करें। उन्होंने कहा कि न्यायालयों में संस्थागत विश्वास और उनकी विश्वसनीयता ही एक समृद्ध संवैधानिक व्यवस्था का आधार है।