हाल ही में भारत और चीन के बीच एक ऐतिहासिक बॉर्डर समझौता साइन हुआ है, जिसके तहत दोनों देश 2020 की स्थिति पर वापस लौटने को सहमत हुए हैं। यह खबर हर जगह चर्चा का विषय बनी हुई है, और इसकी पुष्टि भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर द्वारा की गई है। यह समझौता दोनों देशों के बीच की सीमा पर तनाव को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
2020 की स्थिति पर लौटने की आवश्यकता
2020 में भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर गहरा तनाव हुआ था, जिसके चलते गलवान घाटी में हिंसक झड़पें भी हुईं। तब से दोनों देशों के बीच सीमावर्ती क्षेत्रों में पेट्रोलिंग को लेकर लगातार समस्याएँ बनी रहीं। अब, ब्रिक्स सम्मेलन 2024 से ठीक पहले, भारत और चीन ने इस तनावपूर्ण स्थिति को कम करने का प्रयास करते हुए बॉर्डर पर डिसएंगेजमेंट की योजना पर सहमति व्यक्त की है।
समझौते के पीछे रूस की भूमिका
रूस ने इस समझौते में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हाल ही में, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल और चीन के सुरक्षा अधिकारी दोनों सेंट पीटर्सबर्ग में मिले थे। इस दौरान रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी बातचीत में अहम भूमिका निभाई। रूस का स्वार्थ स्पष्ट है—वह ब्रिक्स संगठन को मजबूत बनाए रखना चाहता है, और इसके लिए भारत और चीन के बीच अच्छे संबंध आवश्यक हैं। यदि भारत और चीन के बीच तनाव बना रहता है, तो ब्रिक्स कमजोर हो सकता है, और इससे रूस के भू-राजनीतिक लक्ष्यों को खतरा हो सकता है।
ब्रिक्स समिट के पहले क्यों हुआ यह समझौता?
यह समझौता ब्रिक्स सम्मेलन से पहले हुआ, जहाँ भारत और चीन के नेताओं के साथ रूस के राष्ट्रपति पुतिन भी एक मंच पर दिखाई देंगे। इस मुलाकात का विश्वभर में महत्व है क्योंकि वैश्विक मीडिया इस तस्वीर का बेसब्री से इंतजार कर रही है। इस समझौते से स्पष्ट है कि भारत और चीन, दोनों देशों ने अपने-अपने हितों को साधने के लिए एक मध्य मार्ग निकाला है।
चीन की दोहरी रणनीति
हालांकि चीन की तरफ से सीमा पर तनाव कम करने की बात की जा रही है, लेकिन दूसरी ओर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपनी सेना को युद्ध के लिए तैयार रहने के निर्देश भी दिए हैं। यह बयान पिछले कुछ वर्षों से लगातार दिया जा रहा है, लेकिन हालिया बयानों में इसकी तीव्रता बढ़ गई है। चीन ताइवान को लेकर अपने सैन्य फोकस को भी बढ़ा रहा है, और यह सीमा समझौता शायद चीन को ताइवान पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर प्रदान करेगा।
निष्कर्ष
यह भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत मानी जा सकती है, क्योंकि चीन के साथ तनाव कम करने में सफलता प्राप्त हुई है। रूस का इस समझौते में हस्तक्षेप भी दर्शाता है कि वैश्विक राजनीति में कोई स्थायी मित्र या शत्रु नहीं होते, केवल स्थायी हित होते हैं। आने वाला ब्रिक्स सम्मेलन महत्वपूर्ण साबित होगा, क्योंकि इस समझौते के बाद भारत और चीन के संबंधों पर पूरी दुनिया की नजर रहेगी।
निष्कर्ष में तीन प्रमुख बिंदु:
- कूटनीतिक जीत: भारत ने चीन के साथ समझौते में एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक सफलता पाई है।
- रूस का प्रभाव: रूस ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई, जिससे ब्रिक्स की स्थिरता बनी रहे।
- चीन की रणनीति: चीन ताइवान पर अपने ध्यान को केंद्रित करने के लिए सीमा पर तनाव कम कर रहा है, लेकिन उसकी सैन्य तैयारियाँ जारी हैं।
आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह समझौता भारत-चीन के बीच दीर्घकालिक शांति लाने में कितना प्रभावी साबित होता है।