1991 की शुरुआत में भारत को बैलेंस ऑफ पेमेंट संकट का सामना करना पड़ा, जब देश के पास केवल 10 दिनों के आयात के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार बचा था। इस संकट ने भारत को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से ऋण लेने के लिए मजबूर किया। यह दौर भारत की आर्थिक स्थिरता और विदेशी मुद्रा भंडार के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था।
1. 1991 का संकट: 1991 में, भारत की विदेशी मुद्रा की स्थिति बेहद कमजोर हो गई थी। देश के पास केवल $1.2 बिलियन का विदेशी मुद्रा भंडार था, जो सिर्फ 10-15 दिनों के आयात के लिए पर्याप्त था। इस स्थिति ने सरकार को IMF से ऋण लेने और आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया को शुरू करने पर मजबूर किया।
2. IMF का हस्तक्षेप और आर्थिक सुधार: भारत ने IMF से $2.2 बिलियन का ऋण लिया, जिसके बदले में आर्थिक सुधार और उदारीकरण के कदम उठाए गए। इनमें व्यापार को खोलना, निजीकरण को बढ़ावा देना, और विदेशी निवेश आकर्षित करना शामिल था। इस आर्थिक उदारीकरण ने भारतीय अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी।
3. भारत की फॉरेक्स रिजर्व की यात्रा: 1991 से भारत की फॉरेक्स रिजर्व यात्रा बेहद प्रेरणादायक है। दिसंबर 2003 में, भारत का फॉरेक्स रिजर्व पहली बार $100 बिलियन को पार कर गया। इसके बाद, यह वृद्धि और तेज हो गई। 2007 में $200 बिलियन तक पहुंचा, और 2017 में भारत ने $400 बिलियन का आंकड़ा छू लिया।
2024 में, भारत का फॉरेक्स रिजर्व पहली बार $700 बिलियन से अधिक हो गया, जिससे भारत दुनिया में चौथे स्थान पर आ गया, केवल चीन, जापान और स्विट्ज़रलैंड के बाद।
4. फॉरेक्स रिजर्व के घटक: भारत के फॉरेक्स रिजर्व में मुख्य रूप से चार प्रमुख घटक होते हैं:
- विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां (Foreign Currency Assets – FCA): यह फॉरेक्स रिजर्व का सबसे बड़ा हिस्सा होता है, जिसमें डॉलर, यूरो, पाउंड, और येन जैसी महत्वपूर्ण मुद्राएं शामिल होती हैं।
- सोना: रिजर्व बैंक के पास जमा सोने का मूल्य भी फॉरेक्स रिजर्व में गिना जाता है।
- IMF के साथ विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights – SDRs): IMF के विशेष आरक्षित मुद्रा के रूप में भारत का हिस्सा।
- आरक्षित स्थिति (Reserve Position) में IMF के साथ।
5. फॉरेक्स रिजर्व के बढ़ने का कारण:
- विदेशी निवेश: विदेशी निवेशकों द्वारा भारत के शेयर और बॉन्ड मार्केट में निवेश से विदेशी मुद्रा का आगमन बढ़ा है। 2024 में, $30 बिलियन से अधिक का निवेश किया गया।
- मजबूत आर्थिक प्रदर्शन: भारत की अर्थव्यवस्था में स्थिर वृद्धि, मुद्रास्फीति पर नियंत्रण और चालू खाता घाटे में सुधार ने इस वृद्धि में योगदान दिया।
- RBI की नीतियां: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) विदेशी मुद्रा की अस्थिरता को नियंत्रित करने के लिए डॉलर की खरीद-बिक्री करता है, जिससे फॉरेक्स रिजर्व को बढ़ाने में मदद मिलती है।
6. 2024 में रुपया और उसकी स्थिति: भारत का फॉरेक्स रिजर्व बढ़ने के बावजूद, 2024 में भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले ऐतिहासिक न्यूनतम स्तर पर है (84 रुपये प्रति डॉलर)। इसके कई कारण हैं, जिनमें मुख्य कारण यह है कि RBI रुपया की अत्यधिक अस्थिरता को रोकने के लिए हस्तक्षेप करता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि रुपया अचानक अत्यधिक मजबूत या कमजोर न हो, जिससे भारतीय निर्यातकों को नुकसान हो सकता है।
7. भविष्य की दिशा: बैंक ऑफ अमेरिका की रिपोर्ट के अनुसार, भारत का फॉरेक्स रिजर्व 2026 तक $745 बिलियन तक पहुंच सकता है। लेकिन मौजूदा रुझानों को देखते हुए, यह संभव है कि यह लक्ष्य अगले साल तक ही प्राप्त हो जाए।
निष्कर्ष: 1991 के संकट से शुरू होकर 2024 में $700 बिलियन के फॉरेक्स रिजर्व तक की यात्रा भारत की आर्थिक शक्ति का प्रमाण है। यह दिखाता है कि कैसे आर्थिक सुधार, विदेशी निवेश और नीतिगत स्थिरता ने देश को वित्तीय रूप से सशक्त बनाया है।