भारत अब ड्रोन तकनीक को सिर्फ निगरानी तक सीमित नहीं रख रहा। सेना ऐसे हथियारबंद ड्रोन खरीद रही है जो ज़रूरत पड़ने पर तुरंत वार कर सकें और सीमा पर हर हलचल पर नज़र रख सकें। यह कदम पाकिस्तान और चीन से बढ़ते खतरों को देखते हुए उठाया जा रहा है।
पिछले कुछ सालों में जम्मू-कश्मीर और पंजाब में कई बार ड्रोन घुसपैठ हुई। कभी हथियार, कभी नशा, तो कभी जासूसी—हर बार खतरे का तरीका नया मिला। अब भारत चाह रहा है कि सिर्फ बचाव नहीं, जवाब भी उसी गति से दिया जाए। इसी लिए हाई-टेक सर्विलांस ड्रोन के साथ हमलावर ड्रोन की भी तैयारी हो रही है।
सरकार ने मेक इन इंडिया पर जोर दिया है ताकि देश के स्टार्टअप और डीआरडीओ जैसे संस्थान अपने दम पर ड्रोन बना सकें। कई कंपनियां सीमावर्ती इलाकों के लिए खास मॉडल तैयार कर रही हैं। लेकिन कॉम्बैट ड्रोन जैसे हाई-एंड सिस्टम के लिए अभी विदेशी तकनीक की साझेदारी भी जरूरी है।
तकनीक जितनी तेज़, खतरा भी उतना ही चालाक। जीपीएस जैमिंग, हैकिंग और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर जैसी चुनौतियां पहले से मौजूद हैं। रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि सिर्फ मशीन खरीदने से काम नहीं चलेगा, सॉफ्टवेयर और साइबर सुरक्षा पर भी उतना ही ध्यान देना होगा।
भारत का ये कदम दिखाता है कि आने वाले समय में लड़ाई सिर्फ जमीन पर नहीं, आसमान में भी तय होगी—जहां नज़र और वार दोनों एक साथ चलेंगे।