12 सितम्बर को सेंट पीटर्सबर्ग में ब्रिक्स एनएसए लेवल की समिट के साइडलाइन्स पर हुई एक महत्वपूर्ण बैठक ने भारत-चीन सीमा विवाद के सुलझने की दिशा में सकारात्मक संकेत दिए। यह बैठक भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुई, जिसमें दोनों देशों ने पूर्वी लद्दाख के बचे हुए क्षेत्रों में पूर्ण डिसएंगेजमेंट (सैनिकों की वापसी) की दिशा में सहमति जताई। भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में इस बात की पुष्टि की गई।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के विवादों के समाधान में समय लगता है। ओआरएफ (ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन) के फेलो और चीन मामलों के जानकार कल्पित मणकिकर ने बताया कि दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और विदेश मंत्री लगातार प्रयासरत रहे हैं। चार वर्षों से चल रहे सीमा विवाद के समाधान के लिए लगातार बातचीत हो रही है, और सैन्य कमांडर स्तर की बैठकें भी इस प्रक्रिया का हिस्सा रही हैं। हालांकि, मौजूदा स्थिति को देखते हुए आने वाले समय में क्या रुख अपनाया जाएगा, यह अभी देखना बाकी है।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 12 सितम्बर को पूर्वी लद्दाख में सीमा मुद्दे पर अपनी राय रखते हुए कहा कि लगभग 75 प्रतिशत सैनिकों की वापसी के मुद्दे सुलझ गए हैं, लेकिन सीमा पर बढ़ते सैन्यीकरण की चुनौती अभी भी बाकी है। उन्होंने जिनेवा में थिंकटैंक के एक कार्यक्रम में कहा कि गलवान घाटी में जून 2020 की घटना ने भारत-चीन संबंधों को व्यापक रूप से प्रभावित किया। उन्होंने यह भी बताया कि दोनों देशों के बीच विवादित मुद्दों पर बातचीत जारी है और अब तक सैनिकों की वापसी से संबंधित लगभग तीन-चौथाई मुद्दों का समाधान हो चुका है।
हालांकि, सूत्रों का कहना है कि पूर्वी लद्दाख में कुछ टकराव वाले बिंदुओं पर अभी भी गतिरोध बना हुआ है। भारत का मानना है कि जब तक सेना अपनी पूर्व स्थिति में नहीं लौटती, तब तक सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति स्थापित नहीं हो सकती और चीन के साथ संबंध सामान्य नहीं हो सकते। जयशंकर ने 2020 की घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि यह कई समझौतों के उल्लंघन के कारण हुआ, और अब तक चीन की मंशा पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाई है।
चीन की ओर से वांग यी ने कहा कि दोनों देशों को एक-दूसरे के मतभेदों को समझदारी से हल करना चाहिए और मिलकर काम करने का उचित तरीका ढूंढना चाहिए। उन्होंने जोर दिया कि चीन-भारत संबंधों को स्वस्थ और स्थिर विकास के रास्ते पर वापस लाने के प्रयास किए जाने चाहिए।
सीमा विवाद के दौरान भारत ने भी अपनी सुरक्षा ढांचे को मजबूत करने के लिए सीमा पर नए एयरबेस और बुनियादी ढांचे का विकास किया है, जबकि चीन ने भी इसी दिशा में तेजी से काम किया। यह स्पष्ट है कि सीमा विवाद का समाधान बिना सैन्यीकरण को कम किए संभव नहीं है।
हालांकि, भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंधों में भी बढ़ोतरी देखी गई है। आर्थिक शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के अनुसार, 2023-24 में भारत और चीन के बीच कुल 118.4 अरब डॉलर का व्यापार हुआ, जो भारत-अमेरिका व्यापार से थोड़ा अधिक है। भारतीय उपभोक्ताओं और व्यापारियों की चीन के सस्ते सामान पर निर्भरता के कारण चीन ने अभी तक इस विवाद पर कड़ा रुख अपनाए रखा है।