करूर रैली हादसा: भीड़ में दबे सपने, बेपरवाह इंतज़ामों पर सवाल

तमिलनाडु के करूर में अभिनेता-राजनीतिज्ञ विजय की रैली जश्न का मंच बननी थी, लेकिन शनिवार को वह चीखों और मातम में बदल गई। मंच तक पहुंचने की होड़ में अचानक भगदड़ मच गई। लोग गिरते गए, ऊपर से भीड़ का दबाव बढ़ता गया और कुछ ही मिनटों में कई जिंदगियां खत्म हो गईं।

जिन घरों के अपने अब लौटकर नहीं आएंगे, उनका दर्द शब्दों में नहीं उतरता। एक पिता अपने बेटे की तस्वीर पकड़कर रो पड़ा—“वो बस विजय को देखने आया था।” किसी मां की आंखें खाली हैं, किसी बहन की रुलाई रुक नहीं रही। ये सिर्फ आंकड़े नहीं, पूरे परिवारों की दुनिया उजड़ गई है।

स्थानीय लोग और पीड़ित परिवार एक ही बात दोहरा रहे हैं: हादसा टाला जा सकता था। रैली की भीड़ का अंदाजा पहले से था, फिर भी सुरक्षा घेरा कमजोर रहा। न पर्याप्त बैरिकेडिंग, न साफ निकासी मार्ग। पुलिस और प्रशासन दोनों की तैयारी नाकाफी दिखी। लोगों ने बार-बार बताया कि गेट पर अफरा-तफरी के वक्त कोई दिशा देने वाला नहीं था।

सरकारी बयान अब जांच और मुआवजे की बातें कर रहा है, मगर ज़मीन पर गुस्सा साफ है। परिवार पूछ रहे हैं—जब मौत सामने थी, तब जिम्मेदारी निभाने वाले कहां थे? तमिलनाडु सरकार और जिला प्रशासन पर सीधे तौर पर लापरवाही का आरोप लग रहा है।

करूर की सड़कों पर फैली ये चुप्पी सिर्फ एक हादसे की नहीं, उस तंत्र की कहानी कह रही है जो भीड़ को आंकड़ों में गिनता है, इंसानों में नहीं।