मराठा आरक्षण आंदोलन का नया मोड़: क्या है कुंबी सर्टिफिकेट और हैदराबाद गजट की अहमियत?

पिछले कुछ दिनों से महाराष्ट्र एक बार फिर से एक बड़े सामाजिक आंदोलन का गवाह बना। मुद्दा वही था — मराठा आरक्षण। लेकिन इस बार, आंदोलन का नेतृत्व कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल की भूख हड़ताल और दबाव के आगे सरकार झुकती नजर आई।

31 अगस्त 2025 को सरकार की ओर से जारी किए गए Government Resolution (GR) के बाद जरांगे ने अपना फास्ट अनटू डेथ समाप्त करने की घोषणा कर दी। उन्होंने इसे “मराठा समाज की ऐतिहासिक जीत” बताया।


क्या है GR और ‘कुंबी सर्टिफिकेट’ का मामला?

सरकार ने एक नया GR जारी करते हुए घोषणा की है कि “यदि कोई मराठा व्यक्ति ये प्रमाणित कर सके कि उनका वंश या परिवार ऐतिहासिक रूप से ‘कुंबी’ जाति से जुड़ा है,” तो उन्हें OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) श्रेणी में शामिल किया जाएगा।

इसके लिए एक अहम आधार होगा:
👉 हैदराबाद गजट और निज़ाम कालीन अभिलेख — यानी 1947 से पहले के दस्तावेज़, जो यह दर्शाते हों कि संबंधित व्यक्ति या उनका परिवार कुंबी जाति में दर्ज था।


हैदराबाद गजट क्या है और क्यों अहम है?

आज के मराठवाड़ा क्षेत्र, जो पहले हैदराबाद राज्य का हिस्सा था, वहां निज़ाम शासन के दौरान जातियों और व्यवसायों को लेकर विस्तृत दस्तावेज रखे जाते थे

यदि कोई मराठा परिवार यह दस्तावेज़ प्रस्तुत कर सके कि उस वक्त वह ‘कुंबी’ जाति में था, तो उसे OBC प्रमाणपत्र दिया जाएगा और शिक्षा व नौकरियों में आरक्षण मिल सकेगा।


कानूनी पृष्ठभूमि: क्यों रद्द हुआ था पिछला आरक्षण?

  • 2018 में ‘सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग अधिनियम’ के तहत मराठा आरक्षण लाया गया था।
  • लेकिन 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया, यह कहते हुए कि:
    • यह संविधान सम्मत नहीं है,
    • और यह 50% आरक्षण सीमा को पार करता है।

अब नया रास्ता अपनाया गया है — मराठाओं को अलग से आरक्षण देने के बजाय उन्हें OBC श्रेणी में शामिल किया जाएगा, जिससे कोर्ट की सीमा का उल्लंघन नहीं होगा।


जरांगे का आंदोलन और बॉम्बे हाईकोर्ट की सख्ती

जरांगे 29 अगस्त से आजाद मैदान, मुंबई में अनशन पर बैठे थे।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने आंदोलन के दौरान कानून-व्यवस्था पर चिंता जताई और सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि:

“आजाद मैदान दोपहर 3 बजे तक खाली होना चाहिए, वरना कोर्ट सड़कों पर उतरेगा।”

इस सख्ती के बाद सरकार ने तेज़ी से कार्यवाही की और GR जारी कर दिया।


सरकार ने कौन-कौन सी मांगे मानीं?

मनोज जरांगे पाटिल की कुल 8 मांगों में से 6 पर सहमति बनी:

  1. कुंबी प्रमाणपत्र की सुविधा
  2. हैदराबाद गजट को कानूनी आधार देना
  3. OBC में मराठाओं को शामिल करना (दस्तावेज़ आधारित)
  4. आंदोलनकारियों पर दर्ज केस वापस लेना
  5. आंदोलन में मृत लोगों के परिजनों को नौकरी और मुआवज़ा देना
  6. एक स्वतंत्र समिति बनाना जो दस्तावेजों की जांच करेगी

OBC समुदाय की आपत्तियाँ: क्या बना नया विवाद?

OBC संगठनों का कहना है:

“मराठा पहले से ही EWS (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) का लाभ ले रहे थे। अब OBC में शामिल करना हमारे अधिकारों पर सीधा हमला है।”

📊 उदाहरण:
2022 में EWS कोटे में 78% एडमिशन मराठा समाज से थे।
2023 में यह आंकड़ा 76% रहा।

अब अगर मराठा समुदाय OBC में भी शामिल हो गया, तो OBC आरक्षण का बोझ और प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जबकि कोटा का प्रतिशत वही रहेगा (27%)


राजनीतिक प्रतिक्रिया: सबकी नजरें वोट बैंक पर

  • सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने इस निर्णय का “स्वागत” किया है।
  • CM एकनाथ शिंदे और डिप्टी CM देवेंद्र फडणवीस ने इसे “ऐतिहासिक कदम” बताया है।

दरअसल, महाराष्ट्र में मराठा समुदाय एक बड़ा राजनीतिक वोट बैंक है, और इससे पहले भी सभी दल इस मुद्दे पर भावनात्मक राजनीति करते रहे हैं।


क्या ये फैसला न्यायिक कसौटी पर खरा उतरेगा?

सरकार का दावा है कि:

  • चूंकि ये अलग से आरक्षण नहीं है, बल्कि OBC के अंदर दस्तावेज आधारित समावेशन है,
  • इसलिए सुप्रीम कोर्ट की 50% सीमा नहीं टूटेगी,
  • और यह निर्णय कानूनी रूप से टिकाऊ होगा।

लेकिन OBC समुदाय पहले ही कोर्ट में चुनौती देने की बात कर चुका है। मामला आगे बढ़ेगा।


निष्कर्ष: क्या ये वास्तव में समाधान है या एक नई शुरुआत?

  • आंदोलन की समाप्ति फिलहाल एक “राजनीतिक समाधान” दिखती है।
  • लेकिन आने वाले समय में जब लोग दस्तावेज़ लेकर लाइन में लगेंगे, और OBC समुदाय न्यायपालिका का रुख करेगा, तब असली परीक्षा होगी।

मराठा आंदोलन की यह नई दिशा एक टेक्निकल समझौता है — लेकिन सामाजिक और राजनीतिक असर अभी पूरी तरह से सामने आना बाकी है।