50 साल पहले की वो रात, जब भारत का लोकतंत्र दम तोड़ गया
इतिहास से डरने वाले कभी इतिहास नहीं रचते, और जो इतिहास रचते हैं, वे इतिहास से कभी नहीं डरते।
लेकिन 50 साल पहले, जिन्होंने भारत को अपनी निजी जागीर समझ रखा था, उन्होंने इतिहास को मिटाकर अपने हिसाब से लिखा, ताकि आपको असली सच कभी न पता चले।
आज हम बात कर रहे हैं उस काले अध्याय की—25 जून 1975 की आपातकाल (Emergency)—जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने पुत्र मोह और सत्ता लालच में भारत के लोकतंत्र का गला घोंट दिया।
सत्ता का खेल: रायबरेली से आपातकाल तक
1971 में इंदिरा गांधी “गरीबी हटाओ” के नारे के साथ रायबरेली से चुनाव जीतने उतरीं। विपक्ष में थे सोशलिस्ट नेता राज नारायण, लेकिन इंदिरा का मकसद चुनाव लड़ना नहीं, हर हाल में जीतना था।
बाद में राज नारायण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में केस किया और वकील शांति भूषण ने अदालत में साबित किया कि इंदिरा ने सरकारी मशीनरी, सरकारी अधिकारी और संसाधनों का दुरुपयोग किया।
12 जून 1975 को जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने फैसला सुनाया—इंदिरा गांधी चुनाव लड़ने के योग्य नहीं हैं, और अगले 6 साल तक चुनाव नहीं लड़ सकतीं।
मां-बेटे की जोड़ी और आधी रात का षड्यंत्र
हार स्वीकारने के बजाय, कांग्रेस ने बंद कमरे में मीटिंग की। कुछ नेताओं ने सुझाव दिया कि इंदिरा कांग्रेस अध्यक्ष रहें, और कोई और प्रधानमंत्री बन जाए।
लेकिन तभी एंट्री हुई संजय गांधी की—जो न सांसद थे, न विधायक, लेकिन पार्टी पर पूरी तरह हावी थे। उन्होंने सभी वरिष्ठ नेताओं को अपमानित किया और सारी कमान अपने हाथ में ले ली।
24 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन वहां से भी राहत नहीं मिली।
इसके बाद आधी रात 12:30 बजे, राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने इंदिरा के कहने पर आपातकाल की फाइल पर साइन कर दिए—बिना कैबिनेट चर्चा, बिना संसद की मंजूरी।
25 जून 1975 – लोकतंत्र की हत्या
सुबह 6 बजे, इंदिरा ने ऑल इंडिया रेडियो पर देश को संबोधित किया—“आपातकाल लागू हो चुका है।”
इसके बाद जो हुआ, वह भारत के इतिहास का सबसे अंधकारमय दौर था:
- विपक्ष के 11 लाख नेताओं और कार्यकर्ताओं को रातों-रात जेल में डाल दिया गया।
- प्रेस पर सेंसरशिप, पत्रकार जेल में।
- जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मोरारजी देसाई जैसे दिग्गज गिरफ्तार।
- विरोध करने वाले आम नागरिकों तक को जेल में ठूंस दिया गया।
नसबंदी का आतंक
संजय गांधी की सबसे कुख्यात योजना—जबर्दस्ती नसबंदी।
गांव-गांव जाकर लोगों को ट्रकों में भरकर नसबंदी करवाई गई। लालच दिया गया—बर्तन, पैसे, कपड़े—but कई जगह जबरन पकड़ा गया।
संक्रमण से सैकड़ों मौतें हुईं। यह कोई नीति नहीं, बल्कि सरकारी हिंसा थी।
21 महीने बाद अंत… लेकिन माफी कभी नहीं
मार्च 1977 में आपातकाल खत्म हुआ, लेकिन तब तक लोकतंत्र, संविधान और जनता का विश्वास चूर-चूर हो चुका था।
संजय गांधी की 1980 में विमान हादसे में मौत हुई, लेकिन इंदिरा ने कभी आपातकाल के लिए देश से माफी नहीं मांगी।
क्यों याद रखना जरूरी है?
आज ठीक 50 साल बाद, वही प्रवृत्ति, वही सत्ता मोह, वही परिवारवाद फिर से राजनीति में दिखता है।
इतिहास हमें चेतावनी देता है—अगर संविधान बचाना है, तो सत्ता का केंद्रीकरण रोकना होगा।
जय सनातन
यह वह सच्चाई है जिसे 50 साल से दबाकर रखा गया। इसे जानना, समझना और आगे पहुंचाना हमारा कर्तव्य है।