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मिर्जापुर के गांवों में दीपावली पर शोक, नहीं जलते दीये – पृथ्वीराज चौहान की याद में

दीपावली पर शोक की परंपरा: मिर्जापुर के गांव जहां दीप नहीं, दीये बुझाए जाते हैं

मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश): जब पूरे देश में दीपावली की जगमगाहट फैली होती है, घर-आंगन दीयों से रोशन होते हैं और लोग नए कपड़े पहनकर उत्सव मनाते हैं, तब मिर्जापुर जिले के कुछ गांवों में सन्नाटा पसरा रहता है। यहां दीप नहीं जलाए जाते, न पटाखे फोड़े जाते हैं और न ही कोई उत्सव मनाया जाता है।

राजगढ़ क्षेत्र के भांवा, अटारी और आसपास के कई गांवों में रहने वाले चौहान वंश के क्षत्रिय परिवार इस दिन को शोक दिवस के रूप में मनाते हैं। उनका मानना है कि दीपावली के दिन ही मुहम्मद गोरी ने वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान की हत्या की थी।

इन गांवों के लोग पृथ्वीराज चौहान को अपना पूर्वज और महान योद्धा मानते हैं, इसलिए इस दिन खुशियां नहीं मनाई जातीं। घरों में अंधेरा रहता है, न बिजली की लाइटें जलती हैं और न ही दीयों की लौ। केवल एक दीया जलाकर लक्ष्मी-गणेश की पूजा की जाती है, जिसे पूजा के बाद बुझा दिया जाता है।

यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। दीपावली के 4-5 दिन बाद, एकादशी के दिन ये लोग अपनी दीपावली मनाते हैं। उस दिन घरों में दीये जलते हैं, मिठाइयां बनती हैं और लोग एक-दूसरे के साथ खुशियां साझा करते हैं।

इन गांवों की यह अनोखी परंपरा उन्हें बाकी देश से अलग बनाती है। जहां एक ओर पूरा देश दीपों की रौशनी में डूबा होता है, वहीं ये लोग अपने वीर पूर्वज की शहादत को याद करते हैं। यह परंपरा शौर्य, बलिदान और इतिहास से जुड़ाव की अनूठी मिसाल पेश करती है।