मोदी सरकार 3.0: टीडीपी की स्पीकर पद की मांग के पीछे की रणनीति

क्यों स्पीकर का पद है इतना महत्वपूर्ण?

देश में 9 जून को मोदी सरकार (Modi 3.0) का गठन होने जा रहा है, लेकिन इस बार बीजेपी के पास पूर्ण बहुमत नहीं है। बीजेपी को सरकार बनाने के लिए जेडीयू और टीडीपी जैसे सहयोगी दलों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। इन दलों की 12 और 16 सीटें एनडीए के लिए महत्वपूर्ण हैं, और यही कारण है कि बार्गेनिंग का दौर जारी है।

टीडीपी की मांग और बार्गेनिंग

टीडीपी (TDP) और जेडीयू दोनों ने अपनी मांगें सामने रख दी हैं। जेडीयू ने तीन मंत्रालयों की मांग की है, जबकि टीडीपी ने लोकसभा स्पीकर का पद चाहा है। बीजेपी के सहयोगी दलों को स्पीकर पद देने को तैयार नहीं होने की खबरें भी आ रही हैं। टीडीपी को तीन कैबिनेट और एक राज्य मंत्री का दर्जा मिल सकता है, लेकिन टीडीपी ने 1998 की तरह स्पीकर पद की मांग की है।

स्पीकर पद की अहमियत

सवाल उठता है कि टीडीपी के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने स्पीकर पद ही क्यों मांगा। दरअसल, लोकसभा स्पीकर का पद बेहद पावरफुल होता है। स्पीकर के फैसले निर्णायक होते हैं और सदन में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है। 2014 में सुमित्रा महाजन और 2019 में ओम बिरला को स्पीकर बनाने के बाद, अब बीजेपी के पास पूर्ण बहुमत नहीं है। ऐसे में बीजेपी को सहयोगी दलों पर निर्भर रहना होगा।

स्पीकर की भूमिका

स्पीकर का फैसला सदन में किसी भी मुद्दे पर अंतिम होता है। दल-बदल कानून के तहत सदस्यों की योग्यता और अयोग्यता का फैसला स्पीकर ही करते हैं। चाहे कोई रेजोल्यूशन हो, मोशन या फिर सवाल, स्पीकर की निर्णायक भूमिका होती है। स्पीकर के पास सदन के संचालन के सभी अधिकार होते हैं, जैसे सदन को स्थगित करना, सदस्यों को निलंबित करना आदि।

1998 की मिसाल

1998 के लोकसभा चुनावों में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। अटल बिहारी वाजपेयी ने टीडीपी के बाहरी समर्थन से सरकार बनाई थी। उस समय टीडीपी के जीएमसी बालयोगी स्पीकर थे। फ्लोर टेस्ट के दौरान स्पीकर ने कांग्रेस सांसद गिरधर गमांग को वोट डालने की अनुमति दी थी, जो उस समय ओडिशा के मुख्यमंत्री थे। यह निर्णय स्पीकर की पावर का एक उदाहरण है।

टीडीपी की रणनीति

टीडीपी जानती है कि अगर स्पीकर उनका होगा तो लोकसभा में उनका प्रभाव रहेगा। कठिन परिस्थितियों में वे स्पीकर के माध्यम से समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। सदन में बराबरी के वोटिंग के दौरान स्पीकर का वोट निर्णायक होता है। यही कारण है कि टीडीपी ने स्पीकर पद की मांग रखी है।

निष्कर्ष

स्पीकर का पद सिर्फ एक संवैधानिक पद नहीं है, बल्कि यह संसद के संचालन में निर्णायक भूमिका निभाता है। टीडीपी की स्पीकर पद की मांग उनकी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है, ताकि वे लोकसभा में अपने प्रभाव को बरकरार रख सकें और महत्वपूर्ण फैसलों में उनकी भूमिका बनी रहे।

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