अरुणाचल में मोदी का भाषण: दावे गूंजे, जमीन पर सवाल बाकी

इटानगर की ठंडी हवा में सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा कि डबल इंजन सरकार से विकास की रफ्तार तेज होगी। मंच से उन्होंने जीएसटी को आसान बनाने और पूर्वोत्तर को देश की नई ताकत बताने की बातें कीं। भीड़ ने तालियां बजाईं, पर वहां बैठे बहुतों के मन में एक ही ख्याल घूम रहा था—ये बातें हमारी रोज़मर्रा की मुश्किलों तक कब पहुंचेंगी?

मोदी ने सड़क, रेल और डिजिटल नेटवर्क की नई योजनाएं गिनाईं। पर सच्चाई ये है कि कई गांव आज भी टूटी सड़कों और कमजोर नेटवर्क से जूझ रहे हैं। पिछले दौरों में जिन पुलों और प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन हुआ था, वे अब भी अधूरे या बार-बार मरम्मत के मोहताज हैं। स्थानीय लोग हंसते हुए कहते हैं, “डबल इंजन है तो सही, लेकिन गाड़ी खिंच ही नहीं रही।”

जीएसटी को “और सरल” करने की घोषणा भी आई। छोटे कारोबारी अब भी हर महीने फाइलिंग और रिफंड की खींचतान में फंसे हैं। उनके लिए ये बातें सुनने में अच्छी लगती हैं, पर राहत का रास्ता कब खुलेगा, ये कोई नहीं बताता।

मोदी ने पूर्वोत्तर को उपेक्षित बताकर बदलाव का दावा किया, मगर विपक्ष पूछ रहा है—अगर बदलाव इतना तेज है तो बेरोज़गारी और पलायन की तकलीफ क्यों बरकरार है? योजनाओं का श्रेय लेने में केंद्र आगे दिखता है, लेकिन फंडिंग और क्रियान्वयन की देरी पर चुप्पी छा जाती है।

सभास्थल पर बैठे लोग सुनते रहे। किसी ने सिर हिलाया, किसी ने आंखें सिकोड़ लीं। ताली बजाना आसान है, पर मन में सवाल गूंजता रहा—क्या ये भाषण हमारे रोज़ के सफर को सचमुच आसान बनाएगा, या फिर ये भी एक और चमकदार वादा बनकर रह जाएगा?