उच्च न्यायालय जमानत के चरण में साक्ष्यों के गुणदोष पर विचार नहीं कर सकते : शीर्ष अदालत

नयी दिल्ली, दो दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि उच्च न्यायालय किसी आपराधिक मामले में जमानत के चरण में साक्ष्य के गुण-दोष पर विचार नहीं कर सकते और किसी व्यक्ति के अपराध का फैसला नहीं कर सकते।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने इसी के साथ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें एक आरोपी के खिलाफ हत्या के मामले के गुण-दोष के आधार पर जमानत के चरण में ‘‘व्यापक टिप्पणियां’’ की गई थीं।

पीठ ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय साक्ष्य में नहीं जा सकते हैं और जमानत के चरण के दौरान यह तय नहीं कर सकते हैं कि कोई व्यक्ति दोषी है या नहीं। हम इस आदेश को एक दिन भी बरकरार नहीं रख सकते। यदि हम इस आदेश को एक दिन भी जारी रखने की अनुमति देते हैं, तो उच्च न्यायालय को जमानत के चरण में आरोपी को दोषी ठहराने या बरी करने की खुली छूट मिलेगी।’’

मामले में 27 मई को अमित कुमार नाम के एक व्यक्ति को जमानत देते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कथित तौर पर मामले के गुण-दोष पर टिप्पणी की।

शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा, ‘‘27 मई, 2024 के आक्षेपित आदेश में, उच्च न्यायालय ने प्रतिवादी संख्या 2 (अमित कुमार) को जमानत देते हुए मामले के गुण-दोष पर व्यापक टिप्पणी की है। आक्षेपित आदेश को रद्द किया जाता है।’’

शीर्ष अदालत ने इस मामले पर फिर से विचार करने के लिए उच्च न्यायालय को वापस भेज दिया और रेखांकित किया कि उसने मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त नहीं की है।

शीर्ष अदालत, मामले में कुमार को दी गई जमानत को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

प्राथमिकी के मुताबिक पुरानी रंजिश की वजह से कुमार और अन्य ने 10 अगस्त, 2023 को शाम करीब छह बजे मुरादाबाद जिले में पीड़ित अनुज चौधरी पर गोलियां चलाईं।

उच्च न्यायालय ने 27 मई को कुमार की जमानत याचिका पर विचार करते हुए कहा, ‘‘संपूर्ण साक्ष्य और परिस्थितियों का समग्रता से आकलन करने के बाद, यह स्पष्ट रूप से सामने आता है कि आवेदक (अमित कुमार) अपार्टमेंट के गेट के बाहर चार पहिया वाहन के पास खड़ा था। और उसे साजिश रचने/हमलावरों को उकसाने की भूमिका के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।’’

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