एक रुपये का सिक्का

एक ब्राह्मण व्यक्ति सुबह उठकर मंदिर की ओर जा रहा था। वहां उसे रास्ते में ₹1 का सिक्का मिलता है। वह ब्राह्मण के मन में विचार आता है कि यह ₹1 रुपया में किसी दरिद्र को दे देता हूं। वह पूरे नगर में ढूंढता है, उसे कोई दरिद्र और भिखारी नहीं मिलता है। हर रोज की तरह सुबह ब्राह्मण मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। वहां उसे एक राजा दिखाई देता है वह बहुत बड़ी सेना लेकर दूसरे नगर में जाता रहता है। राजा जैसे ब्राह्मण व्यक्ति को देखता है उसे प्रमाण करता है और कहता है कि महात्मा मैं युद्ध करने जा रहा हूं, आप मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मैं दूसरे नगर के राज्यों को भी जीत सकूं। यह सुनते ही ब्राह्मण व्यक्ति ₹1 का सिक्का राजा के हाथ में थमा देता है। राजा आश्चर्यचकित हो जाता है और पूछता है कि आपने यह ₹1 का सिक्का मेरे हाथ में क्यों थमाया ? ब्राह्मण व्यक्ति उत्तर देते हुए कहते हैं कि, मैं कई दिनों से कोई दरिद्र व्यक्ति ढूंढ रहा हूं जिसे ₹1 रुपया दे सकूं। पूरे नगर में ऐसा कोई दरिद्र और भिखारी व्यक्ति नहीं मिला जिसे मैं एक रुपये दे सकता हूं। सिर्फ और सिर्फ आप ही मुझे ऐसे दरिद्र व्यक्ति मिले जिनके पास सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं है जिसकी अपेक्षा हमेशा अधिक से अधिक पाने की रहती है। इसलिए मैं यह ₹1 का सिक्का आपको देना चाहता हूं क्योंकि जो दरिद्र व्यक्ति की तलाश में था वह साक्षत मेरे सामने खड़ा है। यह सुनकर राजा का मस्तिष्क शर्म से झुक जाता है और वह अपनी सेना को वापस जाने का आदेश देता है।

शिक्षा:- इंसान को कुछ पाने की जिद्द होनी चाहिए वह बहुत अच्छी बात है। पर आज कल व्यक्ति की इतनी तीव्र इच्छा होने के कारण मन में विचार आता है… तेरे जेब का पैसा मेरे जेब में कैसे आए, ऐसे स्वार्थी सोच में रहता है.. यह बिलकुल भी अच्छी बात नहीं है।फलस्वरूप, उसे सब कुछ मिलने के बाद भी वह दुःखी रहता है क्योंकि उसकी इच्छा कभी खत्म नहीं होती..!!

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