ओएनजीसी प्रमुख को एचपीसीएल का चेयरमैन होना चाहिए: समिति

ओएनजीसी ने जनवरी, 2018 में सरकार से एचपीसीएल में उसकी पूरी 51.11 प्रतिशत हिस्सेदारी 36,915 करोड़ रुपये में खरीदी थी। इसके बाद देश की तीसरी सबसे बड़ी तेल शोधन और ईंधन विपणन कंपनी ओएनजीसी की अनुषंगी कंपनी बन गई।

एचपीसीएल ने शुरू में नए मालिक को मान्यता भी नहीं दी थी, और अबतक उसका नेतृत्व एक चेयरमैन और प्रबंध निदेशक (सीएमडी) कर रहे हैं, जो मूल कंपनी ओएनजीसी या उसके बोर्ड को रिपोर्ट नहीं करते हैं।

अधिग्रहण के बाद ओएनजीसी को एचपीसीएल में में केवल एक बोर्ड पद मिला है।

पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के आग्रह पर ओएनजीसी ने दोनों कंपनियों के बीच तालमेल बनाने के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था।

इस समिति में पूर्व पेट्रोलियम सचिव जी सी चतुर्वेदी, ओएनजीसी के पूर्व चेयरमैन दिनेश कुमार सर्राफ और एचपीसीएल के पूर्व प्रमुख एम बी लाल शामिल हैं।

समिति ने कुछ महीने पहले अपनी रिपोर्ट ओएनजीसी को सौंपी थी, जिसने इसे आगे कार्रवाई के लिए मंत्रालय को भेज दिया है। मामले की प्रत्यक्ष जानकारी रखने वाले दो सूत्रों ने यह जानकारी दी।

समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ओएनजीसी के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक को न केवल ओएनजीसी बल्कि इसकी सभी अनुषंगी कंपनियों – ओएनजीसी विदेश लिमिटेड, एचपीसीएल, मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड और ओएनजीसी पेट्रो एडिशन लिमिटेड (ओपीएएल) के बोर्ड का चेयरमैन होना चाहिए।

उन्होंने रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि अनुषंगी कंपनियों का नेतृत्व सीईओ और प्रबंध निदेशक करेंगे, जो ओएनजीसी के चेयरमैन के प्रति जवाबदेह होंगे।

एचपीसीएल को छोड़कर अन्य सभी अनुषंगी कंपनियों – ओवीएल, एमआरपीएल और ओपीएएल – का नेतृत्व सीईओ और प्रबंध निदेशक करते हैं। ओएनजीसी के चेयरमैन ओवीएल, एमआरपीएल और ओपीएएल के बोर्ड के प्रमुख हैं।

समिति ने कहा कि एमआरपीएल के एचपीसीएल में विलय की स्थिति में एचपीसीएल के एमडी और सीईओ को एमआरपीएल का चेयरमैन होना चाहिए।

रिपोर्ट की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने कहा, ‘‘ओएनजीसी और उसकी सभी प्रत्यक्ष अनुषंगियों का एक चेयरमैन होना चाहिए और अलग इकाइयों का संचालन एक और एमडी/सीईओ द्वारा किया जाना चाहिए।’’

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