पाकिस्तान की दोहरी नीति और आतंकवाद का फैलता जाल

दुनिया जिस समय आतंकवाद से निपटने के लिए संगठित प्रयासों की बात करती है, उसी समय पाकिस्तान का नाम बार-बार सवालों के घेरे में आता है। यह कोई नया आरोप नहीं है। दशकों से पाकिस्तान की धरती को आतंक का अड्डा बताया जाता रहा है। वहां पलने-बढ़ने वाले आतंकी संगठन न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में खून-खराबा करते आए हैं।

वैश्विक घटनाओं से पाकिस्तान का रिश्ता

  • 9/11 हमला (अमेरिका, 2001) – जांच रिपोर्टों में सामने आया कि हमलावरों का नेटवर्क पाकिस्तान से जुड़ा था।
  • लंदन बम धमाके (2005) – कई हमलावर पाकिस्तान जाकर आतंकी ट्रेनिंग ले चुके थे।
  • मुंबई हमला (2008) – सबूत साफ दिखाते हैं कि हमलावर पाकिस्तान से आए और वहीं से उन्हें निर्देश मिले।

इन घटनाओं से यह साफ होता है कि पाकिस्तान का आतंकवाद से नाता किसी एक पड़ोसी देश तक सीमित नहीं है। इसकी जड़ें वैश्विक स्तर पर फैली हुई हैं।

पाकिस्तान की रणनीति: नकारना और पनाह देना

पाकिस्तान हर बार दुनिया के सामने सफाई देता है कि वह आतंकवाद का शिकार है, लेकिन हकीकत यह है कि उसकी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई लंबे समय से आतंकियों को समर्थन देती रही हैं। कभी उन्हें सुरक्षित ठिकाने मुहैया कराए जाते हैं, तो कभी खुलेआम ट्रेनिंग कैंप चलाए जाते हैं।

यह दोहरा रवैया सबसे खतरनाक है—एक तरफ पाकिस्तान आतंकवाद पर बयानबाज़ी करता है, दूसरी तरफ उसकी ज़मीन से आतंकी हमले जारी रहते हैं।

आतंकवाद: पूरी मानवता के लिए खतरा

पाकिस्तान के रवैये का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि आतंकवाद केवल एक क्षेत्र या देश की समस्या बनकर नहीं रहता। यह वैश्विक चुनौती है। अमेरिका, ब्रिटेन, भारत और कई अन्य देशों ने इसकी मार झेली है।

आतंकवाद की यही वैश्विक पहुंच इस बात को साबित करती है कि जब तक पाकिस्तान को उसके कृत्यों के लिए कठघरे में खड़ा नहीं किया जाएगा, तब तक मासूम लोगों का खून बहना बंद नहीं होगा।

अंतरराष्ट्रीय जवाबदेही की ज़रूरत

दुनिया के तमाम देशों को अब केवल निंदा से आगे बढ़ना होगा।

  • पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर जवाबदेह ठहराया जाए।
  • उसके खिलाफ ठोस आर्थिक और राजनीतिक प्रतिबंध लगाए जाएं।
  • आतंकी ढांचे को जड़ से खत्म करने के लिए वैश्विक दबाव बनाया जाए।

निष्कर्ष

आतंकवाद किसी एक सीमा या एक समाज का दर्द नहीं है। यह पूरी मानवता के अस्तित्व पर खतरा है। पाकिस्तान की धरती से पल रहा यह “आतंकी कारखाना” तब तक सक्रिय रहेगा, जब तक दुनिया एकजुट होकर इसे खत्म करने का संकल्प नहीं लेती।