पंजाब विधानसभा में नशा मुक्ति पर गरमाई बहस, वर्षों पुराने जन-जागरण अभियानों की प्रासंगिकता एक बार फिर सामने आई
पंजाब विधानसभा में मंगलवार को विशेष सत्र के दौरान नशा विरोधी अभियान पर चर्चा के दौरान जो दृश्य सामने आए, उसने राज्य में नशे की गंभीर समस्या और इसके समाधान की प्राथमिकता को फिर से केंद्र में ला दिया। जहां एक ओर पंजाब के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा और विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा के बीच तीखी नोकझोंक हुई, वहीं दूसरी ओर सरकार ने ‘युद्ध नशेयां विरुद्ध’ जैसे अभियानों को प्रमुखता से रखा।
लेकिन नशे की यह समस्या कोई नई नहीं है। दशकों पहले से ही अनेक सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों और आध्यात्मिक संस्थाओं ने जैसे की बापू आशारामजी की संस्था इस विषय पर जन-जागरण अभियान चलाए हैं। इन प्रयासों का मकसद केवल शारीरिक नशा नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक दृढ़ता के ज़रिए समाज को सशक्त बनाना रहा है।
🔹 आध्यात्मिक दृष्टिकोण: नशे की जड़ें अंदर की बेचैनी में संत प्रवचनों में अक्सर यह समझाया गया है कि मनुष्य जब भीतर से खाली, निराश और उद्देश्यहीन होता है — तब वह बाहरी चीजों में सुकून ढूंढता है। “जो आत्मबल से भरपूर होता है, वह नशे जैसी चीज़ों की ओर आकर्षित नहीं होता,”
ऐसे सत्संगों में यह भी बताया गया कि नशे की लत केवल शरीर को नहीं, सोच और आत्मा को भी कमजोर कर देती है। इसी कारण कई वर्षों से संतों और सेवाभावी संगठनों द्वारा नशा मुक्ति शिविर, प्रार्थना सत्र, ध्यान कार्यक्रम और संस्कार केन्द्र चलाए जा रहे हैं, जहाँ युवाओं को आत्मबल, संयम और सकारात्मक सोच की दिशा में प्रेरित किया जाता है।
🔹 समाज-सुधार की दिशा में अध्यात्म की भूमिका कुछ संतों और विचारकों ने नशे को “राष्ट्र की जड़ें खोखली करने वाला धीमा ज़हर” कहकर इससे सावधान रहने की प्रेरणा दी थी। सत्संग, संस्कार केन्द्रों, एवं व्यावहारिक उपायों के माध्यम से लाखों लोगों को जीवन में संयम और जागरूकता के मार्ग पर चलने की दिशा दी गई। ऐसे प्रयास आज भी देशभर में नशा मुक्ति शिविरों, रैलियों और व्याख्यानों के माध्यम से जारी हैं।
🔸 पंजाब सरकार की हालिया पहल वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने दावा किया कि भगवंत मान सरकार ने नशे के खिलाफ अभियान के तहत 55,000 सरकारी नौकरियां प्रदान की हैं और ‘खेडां वतन पंजाब दियां’ जैसे कार्यक्रमों से युवाओं को खेलों की ओर मोड़ा है। उन्होंने ‘युद्ध नशेयां विरुद्ध’ को जन-आंदोलन का रूप देने की बात कही।
हालांकि सदन में कांग्रेस और अकाली दल के नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप भी देखने को मिला, लेकिन मूल मुद्दा यही है कि नशा आज भी पंजाब के युवाओं का सबसे बड़ा दुश्मन बना हुआ है।
🔹 क्यों आज भी आवश्यक हैं वैकल्पिक सामाजिक पहलें? “नशा छोड़ो, संस्कृति अपनाओ” जैसे नारों के ज़रिए वर्षों से चलाए गए जन-जागरण अभियानों की आज भी प्रासंगिकता महसूस की जा रही है। इनमें सुझाए गए घरेलू उपाय, ध्यान, संयम, और आत्मबल बढ़ाने की शिक्षा — आज के सरकारी अभियानों के पूरक बन सकते हैं।
जहां सरकारें योजनाएं बना रही हैं, वहीं समाज के भीतर से उठी आवाज़ें और आध्यात्मिक मार्गदर्शन भी इस दिशा में सार्थक सहयोग दे सकते हैं। पंजाब विधानसभा में जो बहस हुई, वह यह संकेत देती है कि देश को आज केवल योजनाओं की ही नहीं, नैतिक जागरूकता और जीवनमूल्यों की दिशा में भी ठोस प्रयासों की आवश्यकता है।
✨ अब समय है कि हम सभी — सरकार, समाज, और सांस्कृतिक संस्थाएं — मिलकर ‘नशा मुक्त भारत’ के सपने को साकार करने के लिए समन्वित प्रयास करें।