“सिबू सोरेन के अंतिम संस्कार में मुस्कराते राहुल गांधी — राजनीति या बेहूदगी की नई परिभाषा?”
क्या ये वो देश है, जहां अंतिम संस्कारों में भी नेता कैमरे देखकर चेहरे के भाव सेट करते हैं?
क्या श्रद्धांजलि की जगह अब पब्लिक रिलेशन की एक्टिंग चलती है?
राहुल गांधी, देश की सबसे पुरानी पार्टी के युवराज, झारखंड के बुज़ुर्ग आदिवासी नेता सिबू सोरेन के अंतिम संस्कार में मुस्कराते हुए कैमरे में कैद हो गए।
हाँ, आपने सही पढ़ा —मंच था दुःख का। माहौल था शोक का। और राहुल बाबा के चेहरे पर थी हँसी की झलक!और फिर जैसे ही कैमरा पकड़ता है, झट से गंभीर मुद्रा ओढ़ ली जाती है —
ये क्या है? राजनीति या नौटंकी?
ये पहली बार नहीं है साहब!
2023: शरद यादव की अंतिम यात्रा, और राहुल गांधी मुस्कराते हुए।
2022: मनमोहन सिंह के घर शोक संवेदना देने पहुंचे, हँसी रोक नहीं पाए।
2016: झारखंड के मुख्यमंत्री के घर, दुख बांटने गए — हँसी फिर साथ आई।
क्या राहुल गांधी का दुख का डिक्शनरी अलग है?या फिर वो अभी तक ये नहीं समझ पाए कि “श्रद्धांजलि” में “चहरे की सेटिंग” नहीं, दिल की संवेदना दिखती है?
किसलिए ये मुस्कान राहुल जी?
क्या ये कैमरा फेस प्रैक्टिस थी?
या फिर “चलो… एक शॉट दे दूं, कल की हेडलाइन बन जाएगी…” वाली सोच?
जनता सब देख रही है।
आपके हर हाव-भाव को पढ़ रही है।
अब ये पुराना बहाना कि “मैं इंसान हूँ, मुस्कुरा दिया” —
माफ नहीं होगा।
नेता हो या अभिनेता — भावनाओं का बाजार नहीं लगेगा अब
शोक की घड़ी में अगर आपका चेहरा शो बन जाए,तो सवाल तो उठेंगे ही —और आज मैं पूछ रहा हूँ।
“आप किसके नेता हैं राहुल गांधी?”
उनके? जो आँसू रोककर अपनों की चिता जलाते हैं…या उनके?जो श्मशान को भी प्रेस मीटिंग समझ बैठते हैं?
अंतिम संस्कार में मुस्कान,और जनता के दुख में मौन —
ये आपकी राजनीति की तस्वीर है।