आज अचानक खबरों में सोनिया गांधी का विदेश नीति पर “गहन” विचार पढ़ने को मिला। पढ़ते ही ऐसा लगा जैसे दशकों की कूटनीति उनकी जेब में रखी हो और अब वो सबको मुफ्त में क्लास दे रही हों। मानो रोज़ सुबह चाय के साथ वे वैश्विक समीकरण सुलझाती हों और हमें बस ज्ञान लेने की देर हो।
सोनिया गांधी को तटस्थ विद्वान या दार्शनिक मानना वैसा है जैसे कोई कहे कि बॉलीवुड अवॉर्ड्स पूरी तरह निष्पक्ष होते हैं। वे कांग्रेस की अनुभवी नेता हैं, उनकी हर बात राजनीति से रंगी होती है। फिर भी उनका लेख पढ़ते हुए लगता है कि उन्हें विदेश नीति का सर्वोच्च ज्ञाता मान लिया गया है—जैसे यह उनका पसंदीदा शौक हो।
राजनीति में “विशेषज्ञता” अक्सर पार्टी लाइन का दूसरा नाम होती है। जो बातें गंभीर विश्लेषण जैसी दिखती हैं, वे दरअसल पुरानी नाराज़गी या नई रणनीति का पैकेट भर होती हैं। पाठक के लिए ज़रूरी है कि वह राय और तथ्य को अलग कर सके, वरना इस तरह की “विद्वत्ता” पढ़कर बस सिर हिलाने के अलावा कुछ नहीं बचेगा।
आख़िर में यही कहा जा सकता है कि सोनिया गांधी कोई तटस्थ दार्शनिक नहीं, बल्कि एक माहिर राजनेता हैं। उनकी विदेश नीति पर राय को महान ज्ञान मानना वैसा ही है जैसे राजनीति में निष्पक्षता ढूँढना—दिलचस्प, पर भरोसे लायक नहीं।