मुंबई, 25 मई : महाराष्ट्र में सोयाबीन की खेती के रकबे में इस साल दो लाख हेक्टेयर तक की कमी आने की आशंका है। कृषि विभाग के अधिकारियों ने रविवार को यह जानकारी देते हुए कहा कि पिछले साल उपज के कम दाम मिलने के कारण ऐसा होगा।
आमतौर पर सोयाबीन को अच्छे दाम मिलने के कारण एक सुनिश्चित नकदी फसलों में शामिल किया जाता है।
दूसरी ओर किसानों ने कहा कि चारे के रूप में सोयाबीन केक के आयात और सरकारी खरीद में अनिच्छा जैसे बाहरी कारक उन्हें इसकी खेती के लिए हतोत्साहित कर रहे हैं।
इसके अलावा अनियमित बारिश से होने वाले नुकसान, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद में देरी के चलते भी इस साल सोयाबीन की खेती में रुचि कम हुई है।
एक अधिकारी ने कहा, ‘‘पिछले साल राज्य में सोयाबीन की खेती का रकबा 52 लाख हेक्टेयर था। इस बार हमारा अनुमान है कि यह घटकर 50 लाख हेक्टेयर रह जाएगा, यानी दो लाख हेक्टेयर की गिरावट।’’
अहिल्यानगर के किसान श्रीनिवास कडलग ने कहा कि सभी जानते हैं कि सरकार पूरी सोयाबीन की फसल नहीं खरीद सकती और व्यापारी इस स्थिति का गलत इस्तेमाल करते हैं।
उन्होंने यह भी दावा किया कि पॉल्ट्री किसान हमेशा एकजुट होकर काम करते हैं और सोयाबीन की कीमतों को नियंत्रित रखने के लिए दबाव बनाए रखते हैं।
स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के नेता माणिक कदम ने बताया, ‘‘पश्चिमी महाराष्ट्र के लिए जैसा महत्व गन्ने का है, वैसा ही महत्व मराठवाड़ा के किसानों के लिए सोयाबीन का है। हालांकि, सोयाबीन और इससे जुड़े उत्पादों के आयात पर केंद्र सरकार के बदलते फैसलों से घरेलू कीमतों में उतार-चढ़ाव आता है। इसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ता है।’’