आयुर्वेद में सुहागा: जुकाम से लेकर त्वचा तक का प्राकृतिक उपचार

आयुर्वेद में सुहागा यानी टंकण भस्म को एक प्रभावी प्राकृतिक औषधि माना जाता है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं। पारंपरिक चिकित्सा में इसका उपयोग कई तरह की सामान्य स्वास्थ्य समस्याओं में किया जाता रहा है।

जुकाम, सिरदर्द और साइनस की समस्या में सुहागा विशेष रूप से उपयोगी माना गया है। हल्दी और सुहागा को हल्की आंच पर गर्म कर उसकी भाप लेने से नाक की बंदी खुलती है। यह तरीका सिरदर्द और साइनस के दर्द को भी कम करता है।

बार-बार होने वाले बुखार में भी सुहागा का प्रयोग आयुर्वेद में बताया गया है। इसे दूध में उबालकर देना लाभकारी माना जाता है, हालांकि इसका सेवन विशेषज्ञ की सलाह के बाद ही किया जाना चाहिए। गलत मात्रा शरीर पर प्रतिकूल असर डाल सकती है।

मुंह के छालों और दुर्गंध की समस्या में गुनगुने पानी में सुहागा मिलाकर कुल्ला करना फायदेमंद माना जाता है। यह छालों की जलन कम करने और मुंह की सफाई बनाए रखने में मदद करता है। नियमित उपयोग से मुंह की दुर्गंध भी कम हो सकती है।

त्वचा और बालों की समस्याओं में भी सुहागा लंबे समय से इस्तेमाल किया जाता है। नारियल तेल में सुहागा मिलाकर लगाने से रूसी कम होती है और बाल मजबूत होते हैं। त्वचा पर इसके हल्के उपयोग से फुंसियां और संक्रमण में भी आराम मिल सकता है।

महिलाओं में मासिक धर्म से जुड़ी समस्याओं और मूत्र संक्रमण में भी इसका उपयोग किया जाता है। आयुर्वेद इसे गर्भाशय के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी मानता है, लेकिन इसके लिए भी विशेषज्ञ की सलाह आवश्यक है।

चूंकि सुहागा एक औषधीय खनिज है, इसलिए इसका उपयोग हमेशा सीमित मात्रा में और चिकित्सक की निगरानी में ही किया जाना चाहिए। गलत मात्रा या गलत तरीका नुकसानदायक हो सकता है, इसलिए सावधानी अनिवार्य है।

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