देशभर में तेजी से बढ़ रहे डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड मामलों ने सरकार और न्यायपालिका दोनों को चिंतित कर दिया है। बिना हथियार के लोगों की जमा-पूंजी लूटने वाला यह साइबर फ्रॉड अब बड़े संगठित रैकेट में बदल चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने इस गंभीर मुद्दे पर सख्त रुख अपनाते हुए पूरे मामले की जांच CBI को सौंप दी है।
अदालत ने कहा कि डिजिटल अरेस्ट स्कैम के लिए खोले गए बैंक खातों में बैंक कर्मचारियों की भूमिका की भी जांच जरूरी है। बैंक कर्मियों की संभावित संलिप्तता की जांच के लिए CBI को भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत पूरी स्वतंत्रता दी गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने उन राज्यों से भी आग्रह किया है जिन्होंने अभी तक CBI को सामान्य सहमति नहीं दी है कि वे डिजिटल अरेस्ट मामलों में जांच की अनुमति दें। कोर्ट के अनुसार इससे राज्य की सीमाओं और राजनीतिक अड़चनों से मुक्त होकर देशभर में समन्वित जांच हो सकेगी।
अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि अगर ये साइबर अपराध विदेश से संचालित हो रहे हों तो CBI इंटरपोल की मदद ले। IT सेक्टर से जुड़े सभी संस्थानों को CBI का सहयोग करने का आदेश दिया गया है। साथ ही मोबाइल सिम जारी करने के लिए जारी गाइडलाइंस का कड़ाई से पालन करने का निर्देश भी दिया गया।
डिजिटल अरेस्ट स्कैम में साइबर अपराधी खुद को CBI, पुलिस, कस्टम्स या सरकारी एजेंसी का अधिकारी बताकर पीड़ित को फोन या वीडियो कॉल करते हैं। वे झूठा दावा करते हैं कि पीड़ित का नाम मनी-लॉन्ड्रिंग, आतंकवाद या मानव-तस्करी में आया है और फर्जी वारंट दिखाकर डराते हैं। इसके बाद वे बैंक खाते फ्रीज करने की धमकी देकर पीड़ित से पैसे ट्रांसफर करवाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सिर्फ साइबर फ्रॉड नहीं है बल्कि न्याय व्यवस्था और संस्थानों की प्रतिष्ठा पर हमला है। इसमें फर्जी दस्तावेज, नकली हस्ताक्षर और अदालत के नाम का दुरुपयोग किया जा रहा है, इसलिए इसे सामान्य ठगी मानकर नहीं छोड़ा जा सकता।
