उच्चतम न्यायालय ने गुजरात केस में चिकित्सा आधार पर जमानत के लिए संत आसाराम जी बापू की याचिका पर शुक्रवार को गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया।
संत आसाराम जी बापू, जो वर्तमान में गुजरात केस के एक मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं, ने सुप्रीम कोर्ट में चिकित्सा आधार पर जमानत की याचिका दायर की है। यह याचिका उनके वकीलों राजेश इनामदार और शशवत आनंद के माध्यम से दायर की गई है, जिसमें दावा किया गया है कि वह गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं।
याचिका के मुख्य बिंदु
- स्वास्थ्य का हवाला:
86 वर्षीय संत आसाराम जी बापू ने याचिका में अपनी बिगड़ती स्वास्थ्य स्थिति का उल्लेख किया है। उनके वकील ने बताया कि वह कई हृदयघात, ब्लॉकेज और गंभीर सह-रुग्णताओं (को-मॉरबिडिटीज़) से पीड़ित हैं। उनका कहना है कि जेल में उनकी स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ रही है, जो उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। - सजा और आपराधिक रिकॉर्ड:
संत आसाराम जी बापू को जनवरी 2023 में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376(2)(C), 377 और अन्य धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया था। मामला दो दशक से भी पुराना है। - मीडिया ट्रायल का आरोप:
संत आसाराम जी बापू ने दावा किया है कि उन्हें मीडिया ट्रायल और साजिश के तहत फंसाया गया है। उनका कहना है कि ये सब उनके आश्रम पर कब्जा जमाने के उद्देश्य से किया गया। - पिछले फैसलों पर सवाल:
याचिका में आरोप लगाया गया है कि उनका दोषसिद्धि केवल शिकायतकर्ता के बयानों पर आधारित है, जबकि कोई स्वतंत्र या चिकित्सीय सबूत नहीं है।
गुजरात सरकार को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदर्रेश और अरविंद कुमार की पीठ ने गुजरात सरकार से तीन सप्ताह में जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा है कि चूंकि यह POCSO (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज) से जुड़ा मामला है, इसलिए चिकित्सा आधार को ध्यान में रखते हुए मामले पर विचार किया जाएगा।
पिछले फैसलों की पृष्ठभूमि
गुजरात हाईकोर्ट ने अगस्त 2024 में उनकी सजा निलंबन की याचिका को खारिज कर दिया था। इसके साथ ही गुजरात हाई कोर्ट ने अपील सुनने की तारीख निश्चित नहीं की थी। गुजरात में हजारों केस में अपील लंबित होने के कारण यह अपील कितने वर्षों में हुई, इसका कुछ निश्चित नहीं है
न्याय में देरी का मुद्दा
संत आसाराम जी बापू के वकीलों ने यह भी दलील दी कि गुजरात में आपराधिक अपीलें दशकों तक लंबित रहती हैं। उनके वृद्धावस्था और गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को देखते हुए उनकी अपील को विशेष मामला मानते हुए राहत दी जानी चाहिए।
न्याय बनाम नैतिक पूर्वाग्रह
याचिका में कहा गया है कि न्याय को नैतिक पूर्वाग्रह या असंबंधित तथ्यों के आधार पर रोका नहीं जाना चाहिए। संत आसाराम जी बापू ने यह भी दावा किया है कि उन्होंने पहले ही 11 साल से अधिक समय जेल में बिताया है और उनके अपील सुनवाई तक जीवित रहने की संभावना कम है।
निष्कर्ष
संत आसाराम जी बापू की यह याचिका भारतीय न्यायपालिका और जेल प्रशासन के समक्ष कई अहम सवाल खड़े करती है। जहां एक ओर यह मामला न्याय में देरी और मानवाधिकारों के मुद्दे को उजागर करता है, वहीं दूसरी ओर यह समाज और कानून के नैतिक मूल्यों की परीक्षा भी लेता है। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय इस मामले में एक मिसाल कायम कर सकता है।