घुसपैठियों पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को रोहिंग्या घुसपैठियों से जुड़े मामले पर सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने सुनवाई के दौरान कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि घुसपैठिए सुरंग से आएंगे और फिर अधिकार मांगेंगे, क्या उनके लिए रेड कार्पेट बिछाया जाए?

पीठ मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की थी। मामला एक हैबियस कॉर्पस याचिका से जुड़ा है जिसमें आरोप है कि दिल्ली पुलिस ने मई में कुछ रोहिंग्या लोगों को हिरासत में लिया और उसके बाद उनका कोई पता नहीं चला।

याचिकाकर्ता ने कहा कि यदि उन्हें वापस भेजना है तो प्रक्रिया कानून के अनुसार होनी चाहिए। उन्होंने केंद्र से हिरासत और निष्कासन की जानकारी देने की मांग की।

केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मांग का विरोध किया। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उत्तर भारत की सीमाएं बेहद संवेदनशील हैं और आप जानते हैं देश में क्या स्थिति है।

उन्होंने पूछा कि क्या भारत घुसपैठियों को भोजन, आश्रय और बच्चों की शिक्षा जैसी सुविधाएं देने के लिए बाध्य है? क्या हमारे अपने गरीब बच्चे इन सुविधाओं के अधिक हकदार नहीं हैं?

कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में हैबियस कॉर्पस बहुत कल्पनात्मक है और फिलहाल सुनवाई से इनकार किया। अदालत ने नोटिस जारी करने से भी मना कर दिया और अगली तारीख 16 दिसंबर तय की।

सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्याओं को शरणार्थी कहे जाने पर भी सवाल उठाया और पूछा कि क्या घुसपैठियों को शरणार्थी का दर्जा दिया जा सकता है?

याचिकाकर्ता की वकील ने स्पष्ट किया कि वे किसी विशेष अधिकार की मांग नहीं कर रही हैं, सिर्फ चाहती हैं कि निर्वासन प्रक्रिया कानून के अनुरूप हो।

उन्होंने कहा कि 2020 के सलीमुल्लाह मामले में कोर्ट कह चुका है कि रोहिंग्याओं को सिर्फ कानूनी प्रक्रिया के अनुसार ही वापस भेजा जा सकता है।

कोर्ट पहले भी कह चुका है कि भारत दुनिया की धर्मशाला नहीं बन सकता जहां हर तरफ से शरणार्थियों को स्वीकार किया जाए। मई में एक अन्य याचिका में अदालत ने कहा था कि रोहिंग्याओं को समुद्र में फेंकने की कहानी एक सुलेख कथा जैसी लगती है।