स्वास्थ्य का नया मंत्र है ‘हेल्थ इन इकोसिस्टम’, साधारण तरीकों को अपना निभाएं जिम्मेदारी

 हमारी सेहत का खजाना संतुलित जीवनशैली पर टिका है। एक सच यह भी है कि हमारी सेहत का रिश्ता सिर्फ शरीर से नहीं, बल्कि पूरे पर्यावरण से जुड़ा है। इसे ही विशेषज्ञ अब हेल्थ इन इकोसिस्टम कह रहे हैं। इसका मतलब है – अगर हमारा वातावरण संतुलित और स्वस्थ होगा तो हम भी स्वस्थ रहेंगे। डब्ल्यूएचओ भी इसे लेकर दुनिया को प्रेरित करता है।

आज जब जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण की चुनौतियां बढ़ रही हैं, तब हेल्थ इन इकोसिस्टम का विचार हमें यह याद दिलाता है कि इंसान और प्रकृति अलग नहीं, बल्कि एक ही चक्र का हिस्सा हैं। अगर हम प्रकृति की रक्षा करेंगे, तो वह भी हमें बेहतर स्वास्थ्य का उपहार लौटाएगी। सतत जीवनशैली का असल संदेश है स्वस्थ ग्रह, स्वस्थ इंसान।

हवा, पानी और मिट्टी की गुणवत्ता से लेकर हमारे खाने की थाली तक, सब कुछ हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। प्रदूषित वायु सिर्फ सांस की बीमारियां नहीं लाती, बल्कि हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा भी बढ़ाती है। रासायनिक खाद और कीटनाशकों से उगाई गई सब्जियां और अनाज हमारे शरीर में धीरे-धीरे जहर घोल देते हैं। यही कारण है कि सतत जीवनशैली यानी सस्टेनेबल लाइफस्टाइल, आज एक जरूरी आंदोलन बन चुका है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में हर साल करीब 70 लाख लोग प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के कारण समय से पहले मौत के शिकार हो जाते हैं। वहीं भारत में आईसीएमआर (2023) की स्टडी में पाया गया कि पर्यावरणीय कारणों से श्वसन रोग और हृदय रोग के मामलों में तेजी आई है। इसका सीधा असर न सिर्फ हमारी उम्र पर बल्कि जीवन की गुणवत्ता पर भी पड़ता है।

सतत या संतुलित जीवनशैली अपनाना कठिन नहीं है। इसका मतलब है ऐसे छोटे-छोटे बदलाव जो हमारी धरती और शरीर दोनों के लिए अच्छे हों, जैसे स्थानीय और मौसमी फल-सब्जियां खाना, प्लास्टिक की बजाय पुनः प्रयोग योग्य सामग्री का इस्तेमाल करना, कार्बन फुटप्रिंट घटाने के लिए पैदल चलना या साइकिल चलाना, और घर की ऊर्जा खपत को नियंत्रित करना। ये बदलाव हमारे स्वास्थ्य को प्राकृतिक रूप से बेहतर करते हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए पर्यावरण को सुरक्षित रखते हैं।

नए शोध यह भी बता रहे हैं कि प्लांट-बेस्ड डाइट, ऑर्गेनिक खेती और पारंपरिक खाद्य आदतें न सिर्फ पोषण का अच्छा स्रोत हैं बल्कि हमारी धरती का बोझ भी कम करती हैं। 2024 में लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन ने साफ कहा कि अगर दुनिया के लोग पौधों पर आधारित आहार की ओर झुकें तो न सिर्फ हृदय रोग और मोटापे जैसे खतरे कम होंगे बल्कि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी घटेगा।