भारत में बना दुनिया का पहला वर्ल्ड मैप: महाभारत में अंतरिक्ष से पृथ्वी का वर्णन

आज जब हम पृथ्वी को अंतरिक्ष से देखते हैं, तो उसका स्पष्ट चित्र हमें वर्ल्ड मैप के रूप में दिखाई देता है। लेकिन हजारों साल पहले, जब अंतरिक्ष में जाना केवल एक कल्पना थी, उस समय भी हमारे प्राचीन ग्रंथों में पृथ्वी की संरचना और उसकी झलक का वर्णन मिलता है। विशेष रूप से महाभारत में धृतराष्ट्र और उनके सारथी संजय के बीच हुए संवाद में पृथ्वी की इस अद्भुत छवि की चर्चा होती है।

महाभारत में पृथ्वी का वर्णन

महाभारत के एक महत्वपूर्ण प्रसंग में धृतराष्ट्र अपने सारथी संजय से पूछते हैं कि पृथ्वी अंतरिक्ष से कैसी दिखती है। संजय इसका उत्तर देते हुए कहते हैं कि पृथ्वी का कुछ हिस्सा पीपल के पत्ते की तरह दिखता है, जबकि बाकी खरगोश की तरह। ये दोनों हिस्से वनस्पतियों से भरे हुए हैं, और बाकी का खाली हिस्सा पानी से भरा हुआ है। यह विवरण उस समय के लिए बहुत ही अद्भुत और अनोखा था, क्योंकि उस काल में किसी ने पृथ्वी को अंतरिक्ष से नहीं देखा था।

रामानुजाचार्य द्वारा प्राचीन मानचित्र

संजय द्वारा दिए गए इस वर्णन का सालों तक कोई विशेष अर्थ समझ नहीं पाया। लेकिन बाद में, महान भारतीय विद्वान रामानुजाचार्य ने इस वर्णन के आधार पर एक चित्र बनाकर इस प्राचीन मानचित्र का एक प्रारूप तैयार किया। हालांकि, तब भी यह मानचित्र थोड़ा जटिल और समझने में कठिन था।

आधुनिक विज्ञान और प्राचीन ज्ञान

आज जब हम आधुनिक वर्ल्ड मैप को देखते हैं, तो हमें इस प्राचीन भारतीय वर्णन में कई समानताएं दिखाई देती हैं। संजय के द्वारा दिया गया वर्णन और आधुनिक वर्ल्ड मैप, विशेषकर पृथ्वी के भौगोलिक रूप में कई साम्य हैं। हालांकि, कुछ अंतर भी हैं, जो संभवतः हजारों वर्षों की भूगर्भीय और भौगोलिक परिवर्तनों के कारण हुए होंगे।

महाभारत काल की वैज्ञानिक सोच

यह अद्भुत है कि महाभारत काल में, जब विज्ञान और प्रौद्योगिकी की समझ आज की तरह विकसित नहीं थी, तब भी पृथ्वी के आकार और संरचना की इतनी सटीक समझ कैसे हो सकती थी। यह हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों की दूरदर्शिता और गहन ज्ञान का प्रमाण है। उनका यह ज्ञान हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि प्राचीन भारत में विज्ञान और ज्योतिष के क्षेत्र में कितना उन्नत ज्ञान था।

निष्कर्ष

भारत का इतिहास न केवल सांस्कृतिक धरोहरों से समृद्ध है, बल्कि विज्ञान और तकनीकी दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। चाहे वह महाभारत में पृथ्वी का वर्णन हो या फिर रामानुजाचार्य द्वारा बनाए गए प्राचीन मानचित्र, ये सभी घटनाएं हमारे देश की समृद्ध वैज्ञानिक परंपरा का हिस्सा हैं। आधुनिक समय में इन प्राचीन ज्ञान को नए सिरे से समझना और उनका अध्ययन करना, हमारे अतीत के गौरवशाली वैज्ञानिक योगदान को पहचानने का महत्वपूर्ण तरीका है।

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