नयी दिल्ली, सात अक्टूबर दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के अधिकारियों ने सोमवार को उच्च न्यायालय को सूचित किया कि यहां सदर बाजार स्थित शाही ईदगाह पार्क में स्वतंत्रता सेनानी महारानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा स्थापित करने से वहां नमाज अदा करने वाले व्यक्तियों के अधिकार को कोई खतरा नहीं होगा।
दिल्ली उच्च न्यायालय को यह भी बताया गया कि प्रतिमा को पार्क में दिल्ली नगर निगम द्वारा स्थापित किया गया है।
मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने महाराना लक्ष्मीबाई की प्रतिमा स्थापित करने को चुनौती देने वाली शाही ईदगाह प्रबंध समिति की याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि इस मुद्दे को दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से सुलझा लिया है।
समिति ने एकल न्यायाधीश के उस आदेश के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिसमें महारानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा स्थापित करने पर रोक लगाने के निर्देश देने से इनकार कर दिया गया था।
सुनवाई के दौरान दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) और एमसीडी की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि संबंधित स्थल पर प्रतिमा और उससे सटी चारदीवारी की स्थापना से वहां नमाज अदा करने वाले लोगों के अधिकारों को कोई खतरा नहीं है।
पीठ ने इन दलीलों को रिकॉर्ड पर दर्ज किया और अपील का निपटारा कर दिया।
पीठ ने कहा, ‘‘डीडीए और एमसीडी के वकील ने बताया कि महारानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा डीडीए (दिल्ली विकास प्राधिकरण) के स्वामित्व वाले ईदगाह पार्क के एक कोने में स्थापित की गई है और वह भी चारदीवारी के निर्माण के बाद, ऐसे में अपील निरर्थक हो गई है।’’
अदालत ने कहा, ‘‘उन्होंने (निगम के अधिकारियों ने) स्पष्ट किया है कि प्रतिमा या चारदीवारी की स्थापना से अपीलकर्ता के नमाज अदा करने के अधिकार को किसी भी तरह से कोई खतरा नहीं है।’’
अपीलकर्ता के वकील ने भी पीठ को बताया कि संबंधित पक्षों के बीच पैदा हुआ अविश्वास दूर हो गया है।
इससे पहले एमसीडी द्वारा प्रतिमा की स्थापना के विरोध पर अदालत ने सवाल उठाते हुए कहा था कि वह नहीं चाहती कि यह मुद्दा “अनावश्यक रूप से विवाद का विषय” बने।
उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि जिनकी प्रतिमा स्थापित की गई है, वह धार्मिक नहीं, बल्कि राष्ट्रीय हस्ती हैं।
अदालत ने रेखांकित किया कि रानी लक्ष्मीबाई एक राष्ट्रीय हस्ती हैं और इतिहास को सांप्रदायिक राजनीति के आधार पर नहीं बांटा जाना चाहिए। पीठ ने ईदगाह प्रबंध समिति को अपनी याचिका में ‘‘निंदनीय दलीलें’’ देने के लिए भी फटकार लगाई।
अदालत ने अपील में एकल न्यायाधीश के खिलाफ कुछ पैराग्राफ पर भी आपत्ति जताई और इसे ‘‘विभाजनकारी’’ बताया।