H-1B वीज़ा पर ट्रम्प का नया दांव: 1 लाख डॉलर की प्रस्तावित फीस से भारतीयों में चिंता

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और रिपब्लिकन पार्टी के संभावित उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प ने फिर से इमिग्रेशन को लेकर कड़ा रुख दिखाया है। व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी कैरोलिन लेवीन ने बताया कि अगर ट्रम्प दोबारा सत्ता में आते हैं तो H-1B वीज़ा पर 1 लाख डॉलर यानी करीब 83 लाख रुपये की नई फीस लगाने की योजना है। यह वही वीज़ा है जिसके सहारे भारतीय आईटी पेशेवर बड़ी संख्या में अमेरिका जाकर काम करते हैं।

H-1B वीज़ा अमेरिकी कंपनियों को विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करने की अनुमति देता है। हर साल हजारों भारतीय इंजीनियर, डॉक्टर और शोधकर्ता इस वीज़ा के जरिए वहां नौकरी पाते हैं। प्रस्तावित शुल्क लागू होने पर कंपनियों के लिए विदेशी प्रतिभा को नियुक्त करना महंगा हो जाएगा और भारतीय पेशेवरों पर सीधा असर पड़ेगा।

ट्रम्प का तर्क है कि अमेरिका में नौकरियों पर सबसे पहले अमेरिकी नागरिकों का हक होना चाहिए। अपने पिछले कार्यकाल में भी उन्होंने H-1B को लेकर कई सख्त नीतियां अपनाई थीं। नई फीस का मकसद, उनके अनुसार, कंपनियों को अमेरिकी कर्मचारियों को प्राथमिकता देने के लिए मजबूर करना है।

अगर यह शुल्क लागू होता है तो अमेरिकी कंपनियों की भर्ती लागत कई गुना बढ़ जाएगी। पहले से लागत घटाने के दबाव में चल रहीं टेक कंपनियां विदेशी कर्मचारियों की संख्या कम कर सकती हैं या काम को अमेरिका के बाहर आउटसोर्स करने का रास्ता चुन सकती हैं। भारतीय आईटी सेक्टर के लिए यह बड़ा झटका होगा क्योंकि हर साल बड़ी संख्या में भारतीय इस वीज़ा पर काम करने जाते हैं।

फिलहाल यह केवल प्रस्ताव है और इसे लागू करने के लिए अमेरिकी कांग्रेस की मंजूरी जरूरी होगी। चुनावी साल में यह मुद्दा राजनीति को और गर्मा सकता है। भारतीय आईटी कंपनियों और पेशेवरों की नजर अब अमेरिका की अगली नीतियों पर टिकी रहेगी, क्योंकि ट्रम्प का यह संकेत साफ है कि आने वाले दिनों में अमेरिकी इमिग्रेशन नीति पहले से भी ज्यादा सख्त हो सकती है।