चीनी सहकारी क्षेत्र में ‘अभूतपूर्व’ सुधार? किसानों ने पूछा— ये बदलाव आंकड़ों में है या खेतों में?

सहकारिता मंत्री अमित शाह ने हाल ही में दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चीनी सहकारी क्षेत्र में ऐसा परिवर्तन हुआ है, जैसा पहले कभी नहीं हुआ। उनके शब्दों में, अब गन्ना किसानों को समय पर भुगतान हो रहा है और मिलों की हालत सुधर चुकी है। लेकिन किसानों का कहना है— अगर ऐसा सचमुच हो गया है तो शायद खेतों में किसी को बताया ही नहीं गया।

कार्यक्रम में अमित शाह ने गर्व से कहा कि 2014 से पहले किसानों को भुगतान में महीनों लग जाते थे, लेकिन अब सरकार की नीतियों ने स्थिति बदल दी है। किसानों ने इस बयान पर मुस्कुराते हुए जवाब दिया— “शायद ये कोई ऐसा भारत है, जहां हमें बुलाया ही नहीं गया।” पश्चिमी उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक के कई गन्ना उत्पादक इलाकों में किसान आज भी भुगतान में देरी और अस्पष्ट जानकारी से परेशान हैं।

पश्चिमी यूपी के किसान नेता धर्मवीर सिंह ने कहा, “सरकार कहती है बकाया घट गया। हकीकत ये है कि उसे नए नाम दे दिए गए— ‘रीशेड्यूल’, ‘अडजस्टमेंट’ और ‘टेक्निकल प्रोसेस’। किसानों की जेब में कुछ नहीं आता, बस एक्सेल शीट पर आंकड़े अच्छे दिखते हैं।”

महाराष्ट्र के एक सहकारी संगठन के प्रतिनिधि ने व्यंग्य में कहा, “ऑनलाइन ट्रैकिंग सिस्टम की बड़ी बातें होती हैं। हकीकत ये है कि कई मिलों में वो सिस्टम उतना ही सक्रिय है जितना मानसून में सरकारी नालों की सफाई।”

विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार की नीतियां दिखती ज़्यादा हैं, असर कम। बड़े कॉरपोरेट और मजबूत सहकारी समूहों को राहत मिली है, जबकि छोटे किसानों के लिए ज़्यादा कुछ नहीं बदला। इथेनॉल उत्पादन, निर्यात नीति और भुगतान प्रणाली पर ज़ोर दिया गया, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इसका लाभ सीमित रहा है।

किसानों ने तंज कसते हुए कहा कि अमित शाह और मोदी सरकार के दावे अब “खेतों से ज़्यादा मंचों” पर नज़र आते हैं। एक किसान नेता ने कहा, “हम भी सुनते हैं कि सब ठीक हो गया है… बस हमारी बकाया पर्ची और बैंक खाते को छोड़कर।”

सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए विपक्ष और किसान संगठनों ने कहा कि सिर्फ़ भाषणों और स्लाइड शो से गन्ना किसानों की ज़िंदगी नहीं बदलती। वास्तविक सुधार वहीं दिखेगा जब किसान को समय पर उसका पूरा पैसा मिलेगा — बिना ‘रीशेड्यूल’ और ‘प्रोसेसिंग’ के बहाने।