“संतों पर हल्ला, मौलाना पर चुप्पी क्यों?”

प्रेमानंद जी और अनिरुद्धाचार्य जी के विरोध में सड़क पर महिलाएं, लेकिन मौलाना छांगरू के मामले में सन्नाटा क्यों?

मुख्य बातें:

हाल ही में हिंदू संत प्रेमानंद जी महाराज और अनिरुद्धाचार्य जी महाराज के खिलाफ कुछ महिलाओं ने जोरदार सड़क प्रदर्शन किए।

वहीं दूसरी ओर, एक मौलाना छांगरू पर गंभीर आरोप लगने के बावजूद, वैसा कोई व्यापक विरोध नहीं देखने को मिला।यह अंतर क्या हमारी सामाजिक सोच और सक्रियता में भेदभाव को उजागर नहीं करता?—

समाज की सोच पर सवालयह चित्र और इसके पीछे का सवाल पूरे समाज की मानसिकता पर उंगली उठाता है। जब भी कोई आरोप हिंदू संतों पर लगता हैचाहे उसका कोई ठोस प्रमाण हो या नहीं — महिलाएं, संस्थाएं और कुछ मीडिया चैनल्स सक्रिय होकर प्रदर्शन करते हैं, सामाजिक बहिष्कार की मांग करते हैं।लेकिन जब यही आरोप किसी अन्य समुदाय के किसी मौलाना पर लगता है — तो वही लोग मौन क्यों हो जाते हैं?

क्या अपराध का विरोध धर्म देखकर किया जाएगा?क्या महिलाओं की सुरक्षा, न्याय और स्वाभिमान भी धर्म और राजनीति की छाया में विभाजित हो चुके हैं?—

विश्लेषण:यह दोहरा रवैया समाज में न्याय की भावना को कमजोर करता है।यदि किसी संत या मौलवी पर आरोप है, तो न्यायिक प्रक्रिया के तहत उसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। लेकिन सामाजिक प्रतिक्रिया भी निष्पक्ष और समान होनी चाहिए।चुप्पी एक पक्षीय हो तो वह अन्याय को बढ़ावा देती है।—

समाप्ति में:

यह रिपोर्ट न तो किसी धर्म के खिलाफ है, न किसी के पक्ष में। यह समाज को एक आईना दिखाने की कोशिश है — कि यदि हम वास्तव में महिलाओं के पक्ष में खड़े हैं, तो हमें निष्पक्षता रखनी होगी।अन्यथा, यह सिर्फ एजेंडा होगा — न्याय नहीं।