उच्‍चतम न्‍यायालय : ‘युवाओं की लगातार मौतों से व्यवस्थागत विफलता उजागर’, छात्रों की आत्महत्या मामले में कोर्ट की तल्ख टिप्पणी

लोकचेतना ब्‍यूरो, नई दिल्‍ली : देशभर के स्कूलों, कॉलेजों और कोचिंग संस्थानों में छात्रों की आत्महत्या के बढ़ते मामलों और उनके मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर रुख अपनाया है। शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को शैक्षणिक संस्थानों के लिए 15 बाध्यकारी दिशानिर्देश जारी किए हैं। इनका पालन तब तक अनिवार्य रहेगा, जब तक सरकार छात्रों की आत्महत्याओं को रोकने के लिए कोई कानून या नियामक ढांचा नहीं बनाती।

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि आत्महत्याओं की वजह से लगातार जा रहीं युवाओं की जानें व्यवस्थागत विफलता को उजागर करती हैं। इस मुद्दे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से ‘2022 में भारत में अचानक होने वाली मौतें और आत्महत्याएं’ शीर्षक से प्रकाशित आंकड़े बेहद चिंताजनक तस्वीर पेश करते हैं। पीठ ने कहा कि युवाओं की लगातार जा रही जानें एक व्यवस्थागत विफलता को दर्शाती है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ऐसे मामले अक्सर मनोवैज्ञानिक तनाव, पढ़ाई के बोझ, सामाजिक कलंक और संस्थागत असंवेदनशीलता जैसे रोके जा सकने वाले कारणों से होती है। 

15 बाध्यकारी दिशानिर्देश जारी
इससे पहले शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को शैक्षणिक संस्थानों के लिए 15 बाध्यकारी दिशानिर्देश जारी किए। इनका पालन तब तक अनिवार्य रहेगा, जब तक सरकार छात्रों की आत्महत्याओं को रोकने के लिए कोई कानून या नियामक ढांचा नहीं बनाती। केंद्र और राज्य सरकारों को 90 दिनों में इस पर पालन रिपोर्ट पेश करनी होगी। पीठ ने विशाखापट्टनम में अपने छात्रावास की छत से गिरने के बाद संदिग्ध परिस्थितियों में मरने वाली 17 वर्षीय नीट उम्मीदवार के मामले का फैसला करते हुए यह दिशानिर्देश जारी किए। पीठ ने नीट अभ्यर्थी की मौत के मामले की सीबीआई से जांच कराने का आदेश भी दिया।

मानसिक स्वास्थ्य संकट की गंभीरता को स्वीकार करने और समाधान करने के लिए बाध्य
भारत में 2022 में आत्महत्या के 1,70,924 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 7.6 फीसदी यानी लगभग 13,044 छात्रों की आत्महत्याएं थीं। पीठ ने जोर देते हुए कहा कि इनमें से 2,248 मौतें सीधे तौर पर परीक्षा में सफल न हो पाने की वजह से हुईं। एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले दो दशकों में छात्रों की ओर से आत्महत्या के मामले 2001 में 5,425 से बढ़कर 2022 में 13,044 हो गए। पीठ ने कहा, ‘स्कूलों, कोचिंग संस्थानों, कॉलेजों और प्रशिक्षण केंद्रों सहित शैक्षणिक संस्थानों में आत्महत्याओं के बढ़ते मामलों को देखते हुए हम देश भर के छात्रों पर असर डालने वाले मानसिक स्वास्थ्य संकट की गंभीरता को स्वीकार करने और उसका समाधान करने के लिए बाध्य हैं।’

किस मामले पर सुनवाई?
दरअसल, पीठ आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें विशाखापत्तनम में तैयारी कर रहे 17 वर्षीय राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (एनईईटी) के अभ्यर्थी की अप्राकृतिक मृत्यु की जांच सीबीआई को सौंपने की याचिका खारिज कर दी गई थी।

छात्रों की बढ़ती आत्महत्याओं का चिंताजनक पैटर्न
शीर्ष अदालत ने कहा कि एनसीआरबी के आंकड़ों से छात्रों की बढ़ती आत्महत्याओं का एक चिंताजनक पैटर्न सामने आया है। मानसिक स्वास्थ्य संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक अभिन्न अंग है। पीठ ने कहा कि संकट की गंभीर प्रकृति को देखते हुए तत्काल अंतरिम सुरक्षा उपाय आज की जरूरत हैं, खासकर कोटा, जयपुर, सीकर, विशाखापत्तनम, हैदराबाद और दिल्ली जैसे शहरों में, जहां बड़ी संख्या में छात्र पढ़ने के लिए आते हैं।