अनंत चतुर्दशी: धार्मिक ही नहीं, आध्यात्मिक दृष्टि से भी खास

अनंत चतुर्दशी को सामान्य लोग गणपति विसर्जन और अनंत सूत्र बाँधने के पर्व के रूप में जानते हैं। लेकिन इसके पीछे गहरा आध्यात्मिक संदेश भी छिपा है।

आध्यात्मिक महत्व

इस दिन अनंत भगवान की पूजा होती है, जो श्रीहरि विष्णु का ही स्वरूप माने गए हैं। ‘अनंत’ का अर्थ है – जिसका कोई अंत नहीं। यानी यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में जो भी संकल्प लें, वह सीमित न होकर दीर्घकालिक और स्थायी होना चाहिए।

अनंत सूत्र का प्रतीक

कलाई पर बाँधा जाने वाला अनंत सूत्र केवल धागा नहीं है, बल्कि यह आत्म-नियंत्रण और विश्वास का संकेत है। इसे 14 गांठ लगाकर बाँधा जाता है, जो जीवन के 14 मूल गुणों और मर्यादाओं को याद दिलाते हैं। जब व्यक्ति इसे मन से धारण करता है तो भीतर एक स्थिरता और संयम विकसित होता है।

आंतरिक शांति और संकल्प शक्ति

व्रत और पूजन का यह दिन मन को शुद्ध करने का माध्यम माना जाता है। उपवास से इंद्रियों पर नियंत्रण आता है और प्रार्थना से भीतर विश्वास की ऊर्जा बढ़ती है। यही कारण है कि इस पर्व को संकल्प शक्ति जागृत करने वाला व्रत कहा गया है।

सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार

धार्मिक मान्यता है कि जो भक्त अनंत चतुर्दशी के दिन श्रद्धा से पूजा करता है, उसके जीवन से नकारात्मकता दूर होती है। पारिवारिक कलह, आर्थिक अड़चनें और मानसिक तनाव धीरे-धीरे कम होने लगते हैं।

संक्षेप में, अनंत चतुर्दशी हमें यह संदेश देती है कि यदि इंसान अपने जीवन में सत्य, संकल्प और विश्वास को आधार बनाए तो कठिन से कठिन राह भी सरल हो जाती है।