अफगानिस्तान लगातार भूकंपों से कांप रहा है। अब तक 2200 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं और 3600 से अधिक घायल हैं। हजारों घर ढह गए हैं, सड़कों पर लाशें बिछी हैं और अस्पतालों में जगह नहीं बची। लेकिन इस त्रासदी से भी बड़ा दर्द तालीबान के कानून ने औरतों पर लाद दिया है।
महिलाओं की जान पर तालीबानी रोक
मलबे में जिंदा दबे होने के बावजूद महिलाओं को बचाने में पुरुष रेस्क्यूकर्मी हिचक रहे हैं। वजह—तालीबानी फरमान, जिसके तहत पुरुष किसी महिला को हाथ नहीं लगा सकते। महिला बचावकर्मी लगभग न के बराबर हैं, नतीजा यह कि औरतें मलबे में पड़ी तड़पती रहती हैं।
सांसों से ज्यादा लाशों को तवज्जो
यहां हालात ऐसे हैं कि मृत महिलाओं को कपड़ों से पकड़कर बाहर खींच लिया जाता है, लेकिन जिंदा औरतों की मदद रोक दी जाती है। इंसानियत का यह उल्टा चेहरा सबको हैरान कर रहा है।
चश्मदीद बयान
कुनार प्रांत की आयशा बताती हैं कि उनके गांव में मदद 36 घंटे देर से पहुंची। पुरुष और बच्चों को निकाल लिया गया, लेकिन महिलाएं खून से लथपथ किनारे पड़ी रहीं। किसी ने हाथ बढ़ाने की हिम्मत नहीं की।
वालंटियर तहजीबुल्लाह मुहाजिब ने कहा—ऐसा लग रहा था मानो महिलाओं को बचावकर्मी देख ही नहीं रहे हों। जिन मृतक औरतों का कोई पुरुष रिश्तेदार नहीं था, उन्हें सिर्फ कपड़ों से घसीट कर निकाला गया।
महिला डॉक्टरों को भी रोका गया
रिपोर्ट्स में सामने आया है कि जो महिला डॉक्टर मदद करना चाहती थीं, उन्हें तालीबान ने रोक दिया। यहां तक कि गांव के पुरुषों ने भी उनकी सेवाएं लेने से इनकार कर दिया।
वादे और हकीकत
तालीबान ने चार साल पहले सत्ता संभालते वक्त दावा किया था कि पुराने कठोर कानून वापस नहीं लाए जाएंगे। लेकिन हकीकत में लड़कियों को छठी क्लास के बाद पढ़ने की मनाही है, अकेले घर से निकलने की इजाजत नहीं और नौकरियों पर पाबंदी कायम है।
इंसानियत की हार
यह आपदा सिर्फ प्राकृतिक नहीं रही, बल्कि मानवीय असंवेदनशीलता की मिसाल बन गई है। दुनिया जहां बेटियों को चांद पर भेज रही है, वहीं अफगानिस्तान में उन्हें मलबे में मरने के लिए छोड़ दिया जा रहा है।