पृष्ठभूमि:
साल 2017 के नियमों के अनुसार, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, महिला यौनकर्मियों और पुरुष के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुषों को रक्तदान करने और रक्तदाता होने से पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया है। यह नियम स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार, राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद (NBTC) और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन द्वारा लागू किए गए हैं।
याचिका की जानकारी:
LGBTQ+ समुदाय ने इस नियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिसमें इन नियमों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। इस याचिका को शरीफ रंगनेकर ने दाखिल किया है।
याचिकाकर्ता का तर्क:
याचिकाकर्ता का कहना है कि इस तरह का पूर्ण प्रतिबंध संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 17 और 21 के तहत संरक्षित समानता, सम्मान और जीवन के अधिकार का उल्लंघन है।
अदालत की कार्यवाही:
सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई 30 जुलाई को करेगा। इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच द्वारा की जाएगी।
निष्कर्ष:
LGBTQ+ समुदाय का यह कदम उनके अधिकारों के प्रति एक महत्वपूर्ण संघर्ष को दर्शाता है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सुप्रीम कोर्ट का इस पर क्या फैसला आता है और इससे समाज में क्या प्रभाव पड़ता है।