चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: क्या है पूरा मामला?

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना और उसे डाउनलोड करना यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO एक्ट 2012) के तहत अपराध की श्रेणी में आएगा। यह निर्णय मद्रास हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनाया गया, जिसमें हाई कोर्ट ने कहा था कि निजी तौर पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना या उसे डाउनलोड करना अपराध नहीं है

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर गंभीर रुख अपनाते हुए साफ किया कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी को देखना या उसे डाउनलोड करना अपराध माना जाएगा। हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल अपने फोन में चाइल्ड पोर्नोग्राफी होने से कोई अपराधी नहीं बनेगा, लेकिन यदि कोई इसे डाउनलोड करता है या देखता है, तो यह अपराध की श्रेणी में आएगा

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि “चाइल्ड पोर्नोग्राफी” शब्द को “बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री” से बदल दिया जाए, ताकि इस गंभीर मुद्दे की सही पहचान हो सके।

मद्रास हाई कोर्ट का फैसला

यह मामला उस वक्त सुर्खियों में आया जब मद्रास हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति को चाइल्ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करने के मामले में दोष मुक्त कर दिया था। कोर्ट का तर्क था कि निजी तौर पर बाल पोर्न देखना या डाउनलोड करना पॉक्सो एक्ट के दायरे में नहीं आता क्योंकि अभियुक्त ने इसे न तो प्रकाशित किया था और न ही किसी अन्य को भेजा था।

मद्रास हाई कोर्ट ने कहा था कि पोर्नोग्राफी उद्देश्यों के लिए किसी बच्चे का उपयोग नहीं किया गया था, इसलिए यह अभियुक्त के नैतिक पतन के रूप में ही समझा जा सकता है।

पुलिस की कार्रवाई और याचिका

इस मामले में चेन्नई पुलिस ने 28 वर्षीय अभियुक्त का फोन जब्त कर पाया था कि उसने चाइल्ड पोर्न वीडियो डाउनलोड किए थे। इसके बाद पुलिस ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 बी और पॉक्सो अधिनियम की धारा 14(1) के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी। अभियुक्त ने इस फैसले को मद्रास हाई कोर्ट में चुनौती दी थी, जहां उसे दोष मुक्त कर दिया गया था।

लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बाल पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना और देखना भारत के कानूनों के तहत गंभीर अपराध है। POCSO अधिनियम 2012 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 के तहत बाल पोर्नोग्राफी का निर्माण, वितरण, और कब्जा अवैध है।

फैसले का महत्व

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बाल यौन शोषण के मामलों में कानूनी स्पष्टता और कठोरता लाने वाला है। यह न केवल पीड़ित बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित करता है, बल्कि समाज में बाल पोर्नोग्राफी जैसे घिनौने अपराधों के खिलाफ एक कड़ा संदेश भी देता है।

निष्कर्ष

इस ऐतिहासिक फैसले से यह साफ हो गया है कि बाल पोर्नोग्राफी से जुड़े मामलों में कानून कठोर होगा और किसी भी प्रकार की छूट नहीं दी जाएगी। यह कदम बाल यौन शोषण को समाप्त करने के दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है, जो समाज में इस अपराध की गंभीरता को उजागर करता है।

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