नयी दिल्ली, 14 अक्टूबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से करोड़ों रुपये के बैंक कर्ज घोटाला मामले में दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड के पूर्व प्रमोटर कपिल वधावन की जमानत याचिका पर वस्तु स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा।
न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह ने सीबीआई को, याचिका के गुण-दोष पर उसकी आपत्तियों सहित विभिन्न पहलुओं पर 10 दिन के भीतर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा।
अदालत ने मामले पर अगली सुनवाई के लिए सात नवंबर की तारीख तय की है।
वधावन के वकील ने सुनवाई के दौरान कहा कि सीबीआई ने 2022 में यह मामला दर्ज किया था और उनके मुवक्किल करीब 600 दिनों से हिरासत में हैं।
वकील ने कहा कि वधावन, मामले में हिरासत में बंद इकलौते आरोपी हैं और हाल में सह-आरोपी को भी जमानत दे दी गयी।
सीबीआई के वकील ने याचिका पर प्रारंभिक आपत्ति दर्ज करायी और कहा कि आरोपी ने सीधे उच्च न्यायालय का रुख किया है तथा निचली अदालत में जमानत याचिका दायर नहीं की।
इस पर वधावन के वकील ने कहा कि उन्होंने सीधे उच्च न्यायालय का रुख इसलिए किया है क्योंकि उसके पास भी याचिका का निपटारा करने के समान अधिकार हैं।
उन्होंने बताया कि आरोपी को पहले निचली अदालत ने वैधानिक जमानत दी थी जिसे उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा था लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इसे रद्द कर दिया था।
दंड प्रक्रिया संहिता के तहत अगर जांच एजेंसी किसी आपराधिक मामले में जांच खत्म होने पर 60 या 90 दिन के भीतर आरोपपत्र दाखिल करने में नाकाम रहती है तो आरोपी वैधानिक (डिफॉल्ट) जमानत का हकदार हो जाता है।
इस मामले में सीबीआई ने प्राथमिकी दर्ज किए जाने के बाद 88वें दिन आरोपपत्र दाखिल किया।
वधावन बंधु -कपिल और धीरज को इस मामले में 19 जुलाई 2022 को गिरफ्तार किया गया था। सीबीआई ने आरोपपत्र 15 अक्टूबर 2022 को दाखिल किया था और निचली अदालत ने इस पर संज्ञान लिया था।
मामले में प्राथमिकी यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की शिकायत पर दर्ज की गयी।
सीबीआई ने प्राथमिकी में आरोप लगाया है कि दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (डीएचएफएल), उसके तत्कालीन सीएमडी कपिल वधावन, तत्कालीन निदेशक धीरज वधावन और अन्य आरोपियों ने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के नेतृत्व में 17 बैंकों के संघ से धोखाधड़ी के लिए एक आपराधिक षडयंत्र रचा। आरोपियों और अन्य ने बैंकों के संघ को 42,871.42 करोड़ रुपये का भारी भरकम कर्ज स्वीकृत करने का लालच दिया।
सीबीआई ने दावा किया कि इसमें से ज्यादातर धनराशि कथित तौर पर गबन कर ली गयी और बैंक को बकाया नहीं चुकाया गया।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि बैंकों के संघ को इससे 34,615 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।