नदियों में रासायनिक मिश्रणों का प्रभाव: AI की नई भूमिका

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) अब नदियों में जटिल रासायनिक मिश्रणों के जलीय जीवन पर प्रभाव को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। यह नई तकनीक पर्यावरण संरक्षण के लिए अधिक प्रभावी उपायों का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। बर्मिंघम विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित एक नई विधि ने दिखाया है कि उन्नत AI तकनीक कैसे खतरनाक रसायनों की पहचान करने और उनके प्रभावों की निगरानी में मदद कर सकती है।

अध्ययन का उद्देश्य और साझेदारी

इस अध्ययन में बर्मिंघम विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने चीन के रिसर्च सेंटर फॉर इको-एनवायर्नमेंटल साइंसेज (RCEES) और जर्मनी के हेल्महोल्ट्ज सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल रिसर्च (UFZ) के साथ मिलकर बीजिंग के पास स्थित चाओबाई नदी प्रणाली के जल नमूनों का विश्लेषण किया। यह नदी प्रणाली कृषि, घरेलू और औद्योगिक स्रोतों से रासायनिक प्रदूषकों को प्राप्त करती है।

प्रमुख निष्कर्ष

अध्ययन के प्रमुख लेखक प्रोफेसर जॉन कोलबॉर्न ने कहा, “पर्यावरण में रसायनों की एक विशाल श्रृंखला मौजूद है। अब हमारे पास इन सभी रसायनों को एक साथ मॉनिटर करने और उनके सामूहिक प्रभावों को समझने का एक तरीका है।” इस अध्ययन के परिणाम ‘एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी’ पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।

शोध में पाया गया कि कुछ रासायनिक मिश्रण जलीय जीवों की जैविक प्रक्रियाओं को प्रभावित करते हैं, और इनके प्रभाव तब और गंभीर हो सकते हैं जब ये रसायन अकेले की तुलना में मिश्रण के रूप में मौजूद होते हैं।

डैफनिया: पर्यावरणीय खतरों का संकेतक

शोधकर्ताओं ने जल के परीक्षण के लिए डैफनिया (Daphnia) नामक छोटे क्रस्टेशियंस का उपयोग किया। ये जीव जल की गुणवत्ता में बदलाव के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं और इनके जीन अन्य प्रजातियों के साथ मेल खाते हैं। डॉ. जिआओजिंग ली, जो इस अध्ययन की प्रमुख लेखिका हैं, ने कहा, “हमारी नवाचारपूर्ण विधि डैफनिया को संकेतक प्रजाति के रूप में उपयोग करके पर्यावरण में संभावित विषैले पदार्थों की पहचान करती है। AI तकनीकों की मदद से, हम यह समझ सकते हैं कि कौन से रसायन जलीय जीवन के लिए विशेष रूप से हानिकारक हो सकते हैं।”

AI के माध्यम से पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान

डॉ. जियारुई झोउ, जिन्होंने AI एल्गोरिदम विकसित किए, ने बताया कि “हमारा दृष्टिकोण दिखाता है कि उन्नत कंप्यूटेशनल विधियां पर्यावरणीय समस्याओं को हल करने में कैसे मदद कर सकती हैं।” प्रोफेसर लुइसा ऑर्सिनी ने कहा, “हमारा डेटा-ड्रिवन दृष्टिकोण पारंपरिक इकोटॉक्सिकोलॉजी को चुनौती देता है और डैफनिया को नई विधियों के साथ नियामक प्रक्रियाओं में शामिल करने का मार्ग प्रशस्त करता है।”

भविष्य की संभावनाएं

डॉ. टिमोथी विलियम्स ने अध्ययन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह अध्ययन पर्यावरणीय मिश्रणों में कम सांद्रता पर भी जीवों पर पड़ने वाले प्रभावों की पहचान करने में मदद करता है। यह पारंपरिक जलीय विष विज्ञान से एक महत्वपूर्ण प्रस्थान है।

निष्कर्ष

यह शोध दिखाता है कि कैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता और उन्नत तकनीकें पर्यावरण संरक्षण में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती हैं। डैफनिया जैसे संवेदनशील जीवों के उपयोग से न केवल विषैले रसायनों की पहचान संभव है, बल्कि यह भविष्य में जल की गुणवत्ता की निगरानी के लिए एक मानक प्रक्रिया बन सकती है।

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