उनकी मुख्य पहचान निम्नलिखित बिंदुओं से होती है:
जन्म: 20 जुलाई 1988 को वृंदावन, उत्तर प्रदेश में।
उनके पिता श्री श्रीभूति कृष्ण गोस्वामी जी तथा माता श्री सुकृति गोस्वामी जी हैं।
वे 38वीं पीढ़ी के आचार्य माने जाते हैं, उनके द्वारा समर्थित परंपरा में।
हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी में प्रवचन देते हैं।
शिक्षा एवं प्रारंभिक जीवन
बचपन से ही इन्हें धार्मिक शिक्षाएँ मिलीं; कहा जाता है कि उन्होंने लगभग 7 वर्ष की आयु में ही भगवद्-गीता पर पहली कथा दी।
आगे की शिक्षा के लिए उन्होंने University of Delhi से समाजशास्त्र में स्नातक की।
कुछ स्रोतों के अनुसार, उन्होंने University of Oxford में भी अध्ययन किया था, लेकिन बाद में भारत लौट आए।
आध्यात्मिक परंपरा एवं भूमिका
उनका सम्बन्ध उस वैष्णव परंपरा से है जिसमें गोपाळ भट्ट गोस्वामी (वृन्दावन के प्रसिद्ध छह गोस्वामी में से एक) शामिल हैं।
वे कथा-वाचक के रूप में प्रसिद्ध हैं — विशेष रूप से श्रीमद्भागवत, चैत न्य चरितामृत, रामायण, आदि पर प्रवचन देते रहे हैं।
युवाओं को आकर्षित करने के लिए उन्होंने “गोपाल क्लब” जैसे कार्यक्रम स्थापित किए हैं, जिससे भक्ति-संस्कृति को आधुनिक रूप में पहुँचाने का प्रयास हुआ है।
सामाजिक एवं वैश्विक गतिविधियाँ
वह भारत के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ विदेशों में (उदाहरण के लिए यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका) भी प्रवचन और कथा कार्यक्रम आयोजित कर चुके हैं।
आधुनिक जीवन एवं आध्यात्मिकता के बीच संतुलन की बात करते हैं और “धार्मिकता से आध्यात्मिकता की ओर” जैसे विषयों पर कार्यक्रम देते हैं।
सामाजिक सेवा, शिक्षा-प्रसार, मंदिर-निर्माण आदि में भी उनकी सक्रियता पाई जाती है।
