बिहार चुनाव 2025: महिलाओं के वोट, नए OBC समीकरण और मुस्लिम

बिहार चुनाव 2025 के नतीजों ने यह साबित कर दिया कि राजनीति में कोई समीकरण स्थायी नहीं होता। RJD का परंपरागत एमवाई (मुस्लिम–यादव) फैक्टर इस बार प्रभावी नहीं रहा और NDA ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की। RJD सिर्फ 25 सीटों पर सिमट गई। सवाल यह है कि एमवाई समीकरण आखिर क्यों नहीं चला? इसके कई राजनीतिक, सामाजिक और रणनीतिक कारण रहे।

महिलाओं का भारी समर्थन NDA के पक्ष में झुका
इस चुनाव में महिला मतदाताओं का समर्थन निर्णायक रहा। मतदान से पहले महिलाओं के खातों में 10,000 रुपये की सहायता और उज्ज्वला, हर घर नल-जल, पोषण तथा छात्राओं के लिए वित्तीय सहायता जैसी योजनाओं का असर ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में दिखा। इससे बड़ी संख्या में महिलाएं NDA के साथ चली गईं और एमवाई फैक्टर कमजोर हो गया।

मुस्लिम वोटों में भारी बिखराव
पहले मुस्लिम वोट लगभग पूरी तरह RJD-कांग्रेस के पक्ष में जाते थे। इस बार AIMIM ने कई मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में मजबूत उम्मीदवार उतारे। कांग्रेस में टिकट वितरण को लेकर असंतुष्टि रही। कुछ सीटों पर BJP के अल्पसंख्यक आउटरीच अभियान का असर भी दिखा। इसके कारण मुस्लिम वोट एकतरफा नहीं रहे और तीन हिस्सों में बंट गए। इससे एमवाई का “M” कमजोर हो गया।

यादव वोटों में NDA की ओर 3–7% का स्विंग
यादव समुदाय RJD का कोर वोट बैंक माना जाता है, लेकिन इस बार कई क्षेत्रों में NDA ने यादव उम्मीदवार उतारे। पंचायत स्तर पर सक्रिय नेताओं के NDA के पक्ष में काम करने से शहरी युवाओं में कानून-व्यवस्था और स्थिरता का मुद्दा प्रभावी रहा। यादव वोटों में 3–7% का स्विंग कई सीटों पर परिणाम बदलने के लिए पर्याप्त साबित हुआ।

गैर–यादव OBC NDA की जीत की रीढ़ बने
कुशवाहा, कुर्मी, धानुक, बिंद, निषाद, पासवान और अन्य गैर–यादव OBC जातियाँ NDA के पक्ष में भारी संख्या में एकजुट रहीं। इन जातियों का वोट पहले भी NDA की ताकत था और इस बार भी यही वोट NDA को निर्णायक बढ़त देने में महत्वपूर्ण साबित हुआ। इससे एमवाई फैक्टर और कमजोर पड़ गया।

NDA का ‘जंगलराज’ नैरेटिव असरदार रहा
चुनाव के दौरान NDA ने लालू-राबड़ी शासन को लेकर “जंगलराज” का नैरेटिव लगातार आगे बढ़ाया। पोस्टर, भाषण और सोशल मीडिया पर प्रचार ने युवाओं, पहली बार वोट देने वालों और मध्यम वर्ग को काफी प्रभावित किया। ग्रामीण क्षेत्रों में भी इस नैरेटिव का असर देखा गया।

तेजस्वी यादव की लोकप्रियता, लेकिन संगठन कमजोर
तेजस्वी यादव की रैलियों में भीड़ रही, लेकिन जमीनी स्तर पर संगठन कमजोर साबित हुआ। टिकट वितरण विवादित रहा, वरिष्ठ नेताओं में तालमेल की कमी दिखी और कई सीटों पर बूथ मैनेजमेंट बेहद कमजोर रहा। इससे एमवाई समीकरण का संभावित लाभ वोट में तब्दील नहीं हो सका।

छोटे दलों ने RJD का आधार वोट काटा
AIMIM, BSP, CPI-ML और कई स्वतंत्र उम्मीदवारों ने मुस्लिम, दलित और पिछड़ा वोटों में सेंध लगाई। NDA का वोट तो एकजुट रहा, लेकिन RJD का वोट कई हिस्सों में बंट गया।