संस्कार ही असली पूँजी: बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की नींव

आजकल बच्चों को मोबाइल, टीवी और ऑनलाइन गेम्स से दूर रखना किसी चुनौती से कम नहीं है। माता-पिता और शिक्षक चिंता में हैं कि आखिर कैसे बच्चों का ध्यान स्क्रीन से हटाकर पढ़ाई और अच्छे संस्कारों की ओर लगाया जाए।

समाधान बहुत जटिल नहीं है। जब बच्चे सही शिक्षा के साथ संस्कारों से जुड़े रहते हैं तो वे स्वाभाविक रूप से समय का सदुपयोग करना सीखते हैं। कहानियाँ, भक्ति-गीत, पारिवारिक संवाद और संस्कारमूलक गतिविधियाँ उन्हें आनंद भी देती हैं और दिशा भी।

कई संत-महापुरुष अपने प्रवचनों में समझाते हैं कि पालन-पोषण का अर्थ केवल सुविधाएँ उपलब्ध कराना नहीं है, बल्कि बच्चों के भीतर मूल्यों का बीज बोना है। उनका मानना है कि यदि माता-पिता बच्चों को समय दें, उन्हें धर्म-कथाएँ सुनाएँ और संस्कृति से जोड़ें, तो वे गलत रास्तों पर नहीं भटकेंगे, बल्कि समाज में प्रकाश फैलाएँगे।

सच्चाई यह है कि मोबाइल और टीवी से ध्यान हटाने का सबसे अच्छा तरीका है बच्चों को आकर्षक विकल्प देना। खेल-खिलौने हों, प्रकृति के साथ समय बिताना हो, या फिर कोई कला सीखना—जब घर का वातावरण सकारात्मक होगा तो बच्चा खुद-ब-खुद स्क्रीन से दूरी बनाएगा।

ऐसे ही संस्कारित बच्चे आगे चलकर न सिर्फ परिवार का गौरव बढ़ाते हैं, बल्कि समाज को भी रोशन करते हैं। यही बाल विकास का वास्तविक लक्ष्य है।