दिल्ली में 53 साल बाद कृत्रिम बारिश का परीक्षण, प्रदूषण में कमी के संकेत

दिल्ली सरकार ने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए कृत्रिम वर्षा का सहारा लिया और आईआईटी-कानपुर की टीम के सहयोग से राजधानी के कई हिस्सों—बुराड़ी, उत्तरी करोल बाग, बादली और मयूर विहार—में क्लाउड सीडिंग तकनीक का परीक्षण किया। परीक्षण के दौरान विमानों से सिल्वर आयोडाइड और सोडियम क्लोराइड के घोल को बादलों में छोड़ा गया ताकि बादल संघनन प्रक्रिया के जरिए बारिश उत्पन्न कर सकें।

दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि एक उड़ान में 8 बार रसायन का छिड़काव किया गया, प्रत्येक झोंके में 2 से 2.5 किलो रसायन प्रयुक्त हुआ। परीक्षण लगभग 30 मिनट तक चला, जबकि मौसम की स्थिति के अनुसार वर्षा होने में 15 मिनट से 24 घंटे तक का समय लग सकता है।

सरकार की रिपोर्ट के अनुसार:

शाम 4 बजे नोएडा में 0.1 मिमी और

ग्रेटर नोएडा में 0.2 मिमी वर्षा दर्ज हुई।

साथ ही, 20 मॉनिटरिंग स्टेशनों से एकत्र किए गए डेटा में बताया गया कि प्रभावित क्षेत्रों में PM 2.5 व PM 10 सूक्ष्म कणों में गिरावट देखने को मिली।

दिल्ली में क्लाउड सीडिंग का आखिरी प्रयास 1971-72 में हुआ था, जिसमें भी सिल्वर आयोडाइड कणों का उपयोग कर माइक्रो-न्यूक्लियस बनाकर बारिश कराई गई थी।

विशेषज्ञों की चेतावनी

पर्यावरणविद विमलेंदु झा ने कहा कि कृत्रिम बारिश सिर्फ अस्थायी राहत देती है।
उन्होंने चेताया कि रसायनों का छिड़काव मिट्टी और जल स्रोतों को प्रभावित कर सकता है।
साथ ही, उन्होंने पूछा कि “जब प्रदूषण का बड़ा हिस्सा पड़ोसी राज्यों से आता है, तो केवल दिल्ली में बारिश कराने से स्थायी समाधान कैसे होगा?”