दिल्ली हाईकोर्ट ने 29 अक्टूबर को फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उसे खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता की ओर से यह आशंका जताई गई थी कि फिल्म में इतिहास से जुड़े तथ्यों को गलत तरीके से दिखाया जा सकता है जिससे सांप्रदायिक माहौल बिगड़ सकता है।
हालांकि, अदालत ने कहा कि ऐसा कोई तर्क प्रस्तुत नहीं किया गया है, जिससे यह साबित हो कि फिल्म की तुरंत सुनवाई या रोक जरूरी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मामला सामान्य प्रक्रिया के तहत तय तारीख पर ही सुना जाएगा और किसी भी तरह की आपात सुनवाई की जरूरत नहीं है।
अदालत ने कहा: “रचनात्मक अभिव्यक्ति और कलात्मक स्वतंत्रता संविधान द्वारा संरक्षित है। केवल आशंकाओं के आधार पर फिल्म की रिलीज़ रोकने का कोई आधार नहीं।”
फिल्म निर्देशक और निर्माता की प्रतिक्रिया
फिल्म के निर्देशक तुषार अमरीश गोयल ने कहा कि ‘द ताज स्टोरी’ कल्पना या अफवाह पर नहीं, बल्कि छह महीने की विस्तृत रिसर्च और सत्यापित ऐतिहासिक दस्तावेजों पर आधारित है।
उन्होंने बताया कि
केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) ने फिल्म की समग्र समीक्षा कर प्रमाणपत्र दिया है।
फिल्म का उद्देश्य किसी समुदाय के खिलाफ माहौल बनाना नहीं, बल्कि तथ्यों पर आधारित विमर्श को बढ़ावा देना है।
उन्होंने कहा,
“मैं अदालत का आभारी हूं जिसने रचनात्मक स्वतंत्रता का समर्थन किया। सिनेमा को सत्य, शोध और बहस का मंच बने रहने देना चाहिए।”
फिल्म के निर्माता सी.ए. सुरेश झा ने कहा कि याचिका में लगाए गए आरोप बेबुनियाद हैं और फिल्म ईमानदारी व जिम्मेदारी के साथ बनाई गई है।
याचिकाकर्ता की दलील
अधिवक्ता शकील अब्बास और भाजपा नेता रजनीश सिंह ने याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि फिल्म
इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करती है
और इससे सांप्रदायिक तनाव का खतरा हो सकता है।
उन्होंने केंद्र और CBFC से फिल्म को दिए गए प्रमाणपत्र की दोबारा समीक्षा की मांग की थी।

