भारत का विशेष उर्वरक उद्योग नए नियमों से जूझ रहा है जिसके तहत ‘बायोस्टिमुलेंट’ को सरकारी नियंत्रण में लाया गया है। उद्योग निकाय ने आगाह किया कि इन अनुपालन संबंधी चुनौतियों के कारण कई छोटे विनिर्माताओं को अपना काम बंद करना पड़ सकता है।
उर्वरक नियंत्रण आदेश (एफसीओ) में फरवरी 2025 के संशोधन ने ‘बायोस्टिमुलेंट’ क्षेत्र के लिए बड़ी चुनौतियां उत्पन्न कर दी हैं। यह क्षेत्र करीब एक दशक तक बिना किसी विनियमन के संचालित होता आया है।
‘बायोस्टिमुलेंट’ ऐसे पदार्थ या सूक्ष्मजीव (जैसे बैक्टीरिया या कवक) होते हैं जो पौधों की वृद्धि और विकास को बेहतर बनाने में मदद करते हैं। ये सीधे तौर पर पौधों को पोषण नहीं देते (जैसे रासायनिक उर्वरक करते हैं), बल्कि पौधों की प्राकृतिक प्रक्रियाओं को सक्रिय करते हैं।
सॉल्युबल फर्टिलाइजर इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (एसएफआईए) के अध्यक्ष राजीब चक्रवर्ती ने ‘पीटीआई-भाषा’ से साथ साक्षात्कार में कहा, ‘‘ उद्योग नए नियमों को अपनाने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है। उन्हें काफी निवेश करना होगा। इस प्रक्रिया में कई छोटे एवं मझोले उद्यम खत्म हो जाएंगे।’’
गैर-सब्सिडी वाले उर्वरक खंड में घुलनशील उर्वरक, जैविक उर्वरक, सूक्ष्म पोषक तत्व और उत्तेजक पदार्थ शामिल हैं। इन्हें एसओएमएस कहा जाता है।
हालांकि पहली तीन श्रेणियों को लंबे समय से उर्वरक नियंत्रण आदेश के तहत विनियमित किया जाता रहा है लेकिन ‘बायोस्टिमुलेंट’ जैसे पदार्थों को अब पहली बार नियामक निगरानी के दायरे में लाया जा रहा है।
चक्रवर्ती ने कहा कि अनुपालन संबंधी चुनौतियां ‘‘ मानवशक्ति, संसाधनों की सीमाओं एवं डिजिटलीकरण की कमी’’ के कारण और भी जटिल हो गई हैं।
उन्होंने कहा कि ‘‘ संपूर्ण प्रक्रिया की समझ और त्वरित कार्यान्वयन पटरी से उतर गया है।’’
नियामकीय अड़चनों ने काफी काम लंबित कर दिया दिया है। हजारों ‘बायोस्टिमुलेंट’ उत्पाद इस समय बाजार में उपलब्ध हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही को सरकारी विश्वविद्यालयों में आवश्यक परीक्षण प्रक्रिया और कृषि मंत्रालय की भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा मूल्यांकन के बाद सरकारी मंजूरी मिली है।
चक्रवर्ती ने कहा, ‘‘ इस पूरी प्रक्रिया की जानकारी उद्योग जगत को नहीं थी। इसलिए कोई भी इस कानून के लिए तैयार नहीं था और उन्होंने किसी से विचार-विमर्श नहीं किया। उन्होंने पूरी प्रक्रिया के लिए कोई संरचनात्मक दृष्टिकोण नहीं अपनाया।’’
कई हालिया रिपोर्ट में कहा गया था कि कृषि मंत्रालय ने कुछ जैव उत्तेजक पदार्थों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है, लेकिन चक्रवर्ती ने स्पष्ट किया कि यह गलत है।
उन्होंने कहा, ‘‘ मंत्री जी बायोस्टिमुलेंट्स को सब्सिडी वाले उर्वरक से जोड़ने की बात कह रहे हैं… वे विनिर्देशन को एफसीओ के समक्ष लाने और फिर एक-एक करके उत्पादन एवं बिक्री की अनुमति देने की बात कह रहे हैं।’’
एसएफआईए प्रमुख ने किसानों में भ्रम की स्थिति को रोकने के लिए विनियमन की आवश्यकता को स्वीकार किया तथा कहा कि अनुमानतः 10,000 उत्पादक एक से अधिक उत्पाद पेश करते हैं, जिससे किसानों के सामने अनेक विकल्प मौजूद हैं।
भविष्य के परिदृश्य पर चक्रवर्ती ने ‘नैनो’ उर्वरकों और डिजिटल कृषि जैसी उभरती प्रौद्योगिकी में अपार संभावनाओं का उल्लेख किया।
चक्रवर्ती ने विशेष उर्वरक क्षेत्र में प्रौद्योगिकी की गहरी पैठ का उल्लेख करते हुए कहा, ‘‘ किसानों को अपने ही स्थान पर विश्लेषणात्मक प्रयोगशालाएं मिल रही हैं। उन्हें अपने ही स्थान पर मौसम निगरानी प्रणालियां मिल रही हैं।’’
उद्योग को उम्मीद है कि जैसे-जैसे परिशुद्ध खेती का विस्तार होगा, तेजी से विकास होगा तथा प्रौद्योगिकी पूरे भारत में सीमांत किसानों को विशेष उर्वरक का लाभ पहुंचाने में मदद करेगी।
पूर्ण ‘बायोस्टिमुलेंट’ विनियमन अनुपालन में तीन से चार वर्ष लगने की उम्मीद है। इस दौरान उद्योग को नए ढांचे में निरंतर समायोजन की उम्मीद है।